ज्वर यात्रा | Jwar Yaatra

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Jwar Yaatra by धनराज चौधरी - Dhanraj Chaudhary

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पालतू सा हिंज मास्टस वॉइस सुनता रहता हैं । प्याला बढ़ाते हुए व पूछते हैं, “राजन ने कसा किया ?” 'बहुत अच्छा सर ।' वह मिमियाता है। लडक्या के आग कसा शेर बना फिरता है । पी० डब्ल्यू० डी० आर वाटर वंक्स के पुरातन बर के फलस्वस्प खुद सड़कें जनसामा य के लिए कभी उपयोगी हो सबती है, ऐसा मुझे अनुमान नहीं था। एक झटका लगा और पिछली सी८ भौर झुक गयी । मैं उससे सट गयी । उप्णता वी एक तीव्र धारा प्रवाहुमान है, पर वह अनभिज्ञ सा वठां है। नम हटी न उसने सरकने का प्रयास क्या । वह अनजान है या ऊचा कलाबार ! स्कूटर को दूसरे गीयर मे ढाल बरसों का मौन तोडता है, प्रयोग शाला की घहारदीवारी स निकलकर स्वच्छ प्रइति का भ्रमण क्तिता सुखकर है।' 'माप कवि भी है।' मैं चुहल वरती हु । 'हा बह उमर खयाम क्या कहते है... एक ठहमक व साथ वह खुलकर हसता है । यह स्थान वस्तुत मनारम ही नही, आकपक भी हूं । साफ-सुधरा सपाठ पानी का दिस्तार, क्षितिज तक फली हरियाली, चारा दिशाजा से आती पगडडिया का संगम स्यल एक बच की नोर इगित कर पूछती हू कोई एवी बच नही, जिस पर महिला भीर पुरुप साथ साथ बठ सकें * बचो पर या तो महिला लिखा है या पुरुष । शायद बच तो नहीं, पर उधर दख रही हू न वहू चद्ुतरा--एक स्थी-पुरुप वी समाधि है 1 चलेंगी * इस ऊची चौवी पर वठे लगता है. मानो दुनियादारी स ही नं दुनिया से भी ऊपर उठ भाय हो । वायु का बग अत्यधिक है । साड़ी मा तो हटना चाहती है या चिपटना । मैं मध्य रिंथति # लिए प्रयास करती हूँ। चोर नजरों से वह ताकता है। ध्यान विकद्रित बरन का एव निरयक तनिद सोभाग्य 17




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