अहिंसा दिग्दर्शन | Ahinsadidarshan

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Ahinsadidarshan by विजय धर्मसूरी- Vijay Dharmasuri

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about विजय धर्मसूरी- Vijay Dharmasuri

Add Infomation AboutVijay Dharmasuri

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
(७) उमसम दूसरा कारण यद भी दै कि मासादारो को गर्मी बहुत लगती दै और श्वास भी क्यादा घलती है किन्तु फलाहारो को मे तो घसी गर्मी लगती हैं और न श्वासदी चढता हैं | पाठकगण । अपलोगो ने सुना हांगा दि लय रूस मोर ज्ञापान की लडाईं शुदं थी तय प्राय क्च्येंदो मांस से सानेधास यडे भवयानव सूसियों को भी, मिताहारी ओर घिघारधील जापानी घोरा ने परास्त परख ससार मे कसी आधयैकारिणी अपनी ज्यपताका फहराइ थी है। यदि म्रात्ाहार से दो वीरता चढती होती तो रूस वी सना में मनुष्य यहुत थे, इतनाहीं नहीं किस्तु मासादहार करने में मी फुछ कमी नहीं थी, फिरमो उन्दीं लोगों की क्यों हाग हुई ? इससे साफ़ मातूम हुआ के दार का मूल कारण अस्थिरखित्ततादी दै | मम्य वी प्रति मासाहार थी ने दाने पर भो ज्ञो इन्द्रिय को लालच से निर्धियप्रो जन मासादार परते द उ्तका युर1 फरर सचवका प्रत्यप् दिखाइं पढता है । अर्थात्‌ मास्ाहाबी प्राय मद का सपा येइयागामी तथा निदेयदरदयी होता है । यथधपि कोई * सासादारो देसा दु्गुणी नहीं दाता तोमी उसबे दारोर में यहुत रोग शुआ करते हैं। जैसे मत्स्य-मासादि थे पाचन न. होने से सानेवास को राशि में खड़ी डफ़ार आती हैं, और चहुतों बाप रस विंग लाला हैं तथा दारोर पोला प्प्ताता ह इाध पेर सर जाते दे, पं बट जाता दें और दिसो २ था तलापेरभो फूर जाते हं, तथा गल में गांठ पदा दा ज्ञातो दे. और यहां तव्र दूखने में बाया दे कि बहुत




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now