धर्मदेशना | Dharam Deshana

Dharam Deshana (1930) Ac 675 by विजय धर्मसूरी- Vijay Dharmasuri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(४) प्रातःकाल ४-४॥ बने उठना, शौचादि से निवृत्त हो कर सामागिक व प्रतिक्रमण काना | पश्चात्‌ नेन बाह़क-बालि- कार्मो को घार्मिक भभ्यास काना | पंच प्रतिक्रमण ही नहीं, जीवविचार, नवतत्त्व, दुंढक, सेग्रहणी तक का भी आप अभ्यात्त कराते थे | ( एक गर्म श्रीमंत होते हुए खुद शिक्षक हो करके बैठना, ओर बिरादरी के बच्चों को अपने छोटे भाई किंवा पुत्र समझ कर अध्ययन कराना, यह कितनी महत्त की बात है ) पश्चात्‌ मंदिर में जाकर एक अथवा दो प्ामायिक् करना भौर साध्याय करना । साधु मुनिरानों का जोग हो तो व्याख्यान श्रवेण करना । अन्यया, जो भाई नित्य सामायिक्र करने को आते, उनको शाश्त्लीय बाते छुनाते । पश्चात्‌ विधिपूर्वक स्नान करके प्रभु पूजा करते | द्रव्य-माव से पूजा करने में आपको करीब १॥ घंटा छगता | करीब १ बने मोजन करके आप दुकान पर जाते | ओर नीतिपूर्वक व्यापार करते । दुपहरके पमय मे कुछ समय भाप वर्तमान पत्र भ पढ़ते। वर्त्तमान पत्रों को पढ कर स्रामाजिक वर्तमान परिस्थितियों के अभ्यास करने का भी आप को पूरा शोख था) प्रायः कोई र्ता जेनपत्र नहीं होगा, नो आप न मंगवाते हों। ५ बजे मोजन करने के पश्चात्‌ आप नित्यप्रति देवसी प्रतिक्रमण करते | फिर मंदिर में जाकर प्रभु-भक्ति मं-भननों को गाने में तीन हो नप्ते | पश्चात्‌ नो स्नेही भापके पाप्त बैठने को आते उनके स्ाथ ज्ञानचर्चा करते । फिर शयन करते ।




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