हिंदी तथा भारतीय भाषाओ के समान तत्त्व | Hindi Tatha Bhartiy Bhashaoo Ke Saman Ttatva

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Book Image : हिंदी तथा भारतीय भाषाओ के समान तत्त्व  - Hindi Tatha Bhartiy Bhashaoo Ke Saman Ttatva

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ | हिन्दी तथा भारतीय भाषाओं में समान तत्त्व तेरी चरणे मेरी परणाम चाकरि माँगो-नाहि आन काम | आपुन करमें रनम जाहाँ होई ताहैं तुय चरणे चाकर रहें गौर 1। माधवदेव ने अनेक चृत्यनाटिका अंकियानाट भी लिखीं । इस परम्परा में अससिया में नाट्य साहित्य की खूब रचना हुई । इन धार्मिक एकांकियों की भाषा उस सदी की अनेक भाषाओं का मिश्रित रूप था पर आधार ब्जबोली ही था । यशोदा के भय से कृष्ण कदम्ब के पेड़ के नीचे सो जाते और कहते हैं-- एक ग्वालिनी माति हामाकू देलइ .बूलि. मिठाई तहेक भोजन करिये शयन करूँ चेतन हारावलों माई | एक गोपी ने मुझे बुलाकर मिठाई खाने को दी जिसको खाने के बाद मैं सो गया और अचेत हो गया 1 सोलहवीं शंताब्दी के ही आसाम के कवि गोपाल ने जन्मयात्ा नाटक और रामचरण ठाकुर ने कंसवध लिखा जिसकी भाषा में श्रजभाषा का पुरा- पूरा पुट-है। इन नाटकों का संकलन तथा उस पर विस्तार से श्री जगदीशचन्द् माथुर तथा डॉ० दंशरथ ओझा ने लिखा है । बंगला के समर्थ कवि और अनुरागवल्ली के रचयिता श्री मनोहरदास ने रसिक कर्णाभरण लीला सं० १७४५४ की रचना की । १. कुल ३८६ छन्द हैं जिनमें ३४४ रोला ४ दोहा १ सोरठा तथा १ छप्पय है । वेगुन कोला से पैदल चलकर आगे एक छन्द का आनन्द लीजिए---- सदा एक रस वास मास छिन छिंन नव दरसै । सो पावे रसभेद प्रेम जाकें जिय परसे ॥। यह वहीं मनोहरदास हैं जिन्होंने गुजराती कवि प्रियादास उनके पटट- शिष्य को नाभादासक़ृत भक्तमाल की टीका लिखने की प्रेरित किया । प्रियादास ने श्रीरसिक मोहिनी छन्द सं० १ में मनोहरदास का स्मरण किया-- . महाप्रभु चेतन्य हरि. रसिक सनोहर नाम । सुमिरि चरन अरविन्द वर वरनों महिंमा धाम ॥। भक्तिरस बोधिनी टीका क० सं० ७३० में उल्लेख किया -- .... जनमन हरि लाल मनोहर .नांव पायो .. उनहूँ की मनहरि लीनों ताते राय हैं ।




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