हिंदी तथा भारतीय भाषाओ के समान तत्त्व | Hindi Tatha Bhartiy Bhashaoo Ke Saman Ttatva

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Hindi Tatha Bhartiy Bhashaoo Ke Saman Ttatva by डॉ. कैलाश चन्द्र भाटिया - Dr. Kailash Chandra Bhatia

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about डॉ. कैलाश चन्द्र भाटिया - Dr. Kailash Chandra Bhatia

Add Infomation About. Dr. Kailash Chandra Bhatia

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
६ | हिन्दी तथा भारतीय भाषाओं में समान तत्त्व तेरी चरणे मेरी परणाम चाकरि माँगो-नाहि आन काम | आपुन करमें रनम जाहाँ होई ताहैं तुय चरणे चाकर रहें गौर 1। माधवदेव ने अनेक चृत्यनाटिका अंकियानाट भी लिखीं । इस परम्परा में अससिया में नाट्य साहित्य की खूब रचना हुई । इन धार्मिक एकांकियों की भाषा उस सदी की अनेक भाषाओं का मिश्रित रूप था पर आधार ब्जबोली ही था । यशोदा के भय से कृष्ण कदम्ब के पेड़ के नीचे सो जाते और कहते हैं-- एक ग्वालिनी माति हामाकू देलइ .बूलि. मिठाई तहेक भोजन करिये शयन करूँ चेतन हारावलों माई | एक गोपी ने मुझे बुलाकर मिठाई खाने को दी जिसको खाने के बाद मैं सो गया और अचेत हो गया 1 सोलहवीं शंताब्दी के ही आसाम के कवि गोपाल ने जन्मयात्ा नाटक और रामचरण ठाकुर ने कंसवध लिखा जिसकी भाषा में श्रजभाषा का पुरा- पूरा पुट-है। इन नाटकों का संकलन तथा उस पर विस्तार से श्री जगदीशचन्द् माथुर तथा डॉ० दंशरथ ओझा ने लिखा है । बंगला के समर्थ कवि और अनुरागवल्ली के रचयिता श्री मनोहरदास ने रसिक कर्णाभरण लीला सं० १७४५४ की रचना की । १. कुल ३८६ छन्द हैं जिनमें ३४४ रोला ४ दोहा १ सोरठा तथा १ छप्पय है । वेगुन कोला से पैदल चलकर आगे एक छन्द का आनन्द लीजिए---- सदा एक रस वास मास छिन छिंन नव दरसै । सो पावे रसभेद प्रेम जाकें जिय परसे ॥। यह वहीं मनोहरदास हैं जिन्होंने गुजराती कवि प्रियादास उनके पटट- शिष्य को नाभादासक़ृत भक्तमाल की टीका लिखने की प्रेरित किया । प्रियादास ने श्रीरसिक मोहिनी छन्द सं० १ में मनोहरदास का स्मरण किया-- . महाप्रभु चेतन्य हरि. रसिक सनोहर नाम । सुमिरि चरन अरविन्द वर वरनों महिंमा धाम ॥। भक्तिरस बोधिनी टीका क० सं० ७३० में उल्लेख किया -- .... जनमन हरि लाल मनोहर .नांव पायो .. उनहूँ की मनहरि लीनों ताते राय हैं ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now