भारतेन्दु ग्रन्थावली भाग - 2 | Bharatendu Granthavali Bhag - 2

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Book Image : भारतेन्दु ग्रन्थावली भाग - 2  - Bharatendu Granthavali Bhag - 2

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भक्त स्वस्थ भा . त्रिकोण के चिन्ह को भाव चर्णन स्वीया परकीया चहरि गनिका तीनहू नारि | सबके पति अ्रगटित करत मनसथ-सथन सुरारि ॥ १ ॥ तीनहु शुन के भक्त को यह उद्धरण समर्थ । सस त्रिकोन को चिन्ह पद धारत याके अर्थ ॥ २॥ घ्रह्मा-दरि-्दर तीनि सुर याही ते. प्रगटंत। या दित चिन्दद त्रिकोन को धारत राधाकंत ॥ ३ ॥ श्री-भू-ठीछा . तीनहू दासी याकी. जान । यातें चिन्ह तप्रिकोन को पद धघारत भगवान ॥ ४ ॥ स्वर्ग-भूमि-पाताढ में विक्रम हें गए धाइ। याहि जनावन देत न्रय कोन चिन्ह दरसाइ ॥ ५॥। जो. थाके शरनहिं गए सिटे तीनहूँ ताप । या हित चिन्ह प्रिकोन को धरत हरत जो पाप ॥ ६ ॥ भक्ति-ज्ञान-वैराग. हैं. याके साधन तीन । यातें चिन्ह चरिकोन को छृप्ण-चरत छखि छीन || ७॥! त्रयी सांख्य आराधि के पावत जोगी जौन । सो पद है येहि देत यह चिन्ह त्रिश्नुति को सौन ॥ ८ ॥ दुन्दावन छ्वारावती मधघुपुर तजि नहिं. जाहिं । यातें चिन्ह ब्रिकोन है कृप्ण-चरन के. माहिं || ९ ॥| का सुर का नर असुर का सब पें ष्टि समान । एक भक्ति तें होत चस या दित रेखा जान ॥१०॥ सित शिव जू वंदन करत तिन नैननि की रेख । या हित चिन्ह त्रिकोन कों कृप्ण-वरन में देख ॥१९॥| घृक्ष के चिन्ह को भाव वर्णन वृक्ष-रूप सब जग उअहै वीज-रूप दरि आप | थातें तर को चिन्ह पग प्रगटत परम प्रताप ॥ १ !। पुग्क




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