भारतेन्दु ग्रन्थावली भाग - 2 | Bharatendu Granthavali Bhag - 2
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
23 MB
कुल पष्ठ :
952
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भक्त स्वस्थ
भा
. त्रिकोण के चिन्ह को भाव चर्णन
स्वीया परकीया चहरि गनिका तीनहू नारि |
सबके पति अ्रगटित करत मनसथ-सथन सुरारि ॥ १ ॥
तीनहु शुन के भक्त को यह उद्धरण समर्थ ।
सस त्रिकोन को चिन्ह पद धारत याके अर्थ ॥ २॥
घ्रह्मा-दरि-्दर तीनि सुर याही ते. प्रगटंत।
या दित चिन्दद त्रिकोन को धारत राधाकंत ॥ ३ ॥
श्री-भू-ठीछा . तीनहू दासी याकी. जान ।
यातें चिन्ह तप्रिकोन को पद धघारत भगवान ॥ ४ ॥
स्वर्ग-भूमि-पाताढ में विक्रम हें गए धाइ।
याहि जनावन देत न्रय कोन चिन्ह दरसाइ ॥ ५॥।
जो. थाके शरनहिं गए सिटे तीनहूँ ताप ।
या हित चिन्ह प्रिकोन को धरत हरत जो पाप ॥ ६ ॥
भक्ति-ज्ञान-वैराग. हैं. याके साधन तीन ।
यातें चिन्ह चरिकोन को छृप्ण-चरत छखि छीन || ७॥!
त्रयी सांख्य आराधि के पावत जोगी जौन ।
सो पद है येहि देत यह चिन्ह त्रिश्नुति को सौन ॥ ८ ॥
दुन्दावन छ्वारावती मधघुपुर तजि नहिं. जाहिं ।
यातें चिन्ह ब्रिकोन है कृप्ण-चरन के. माहिं || ९ ॥|
का सुर का नर असुर का सब पें ष्टि समान ।
एक भक्ति तें होत चस या दित रेखा जान ॥१०॥
सित शिव जू वंदन करत तिन नैननि की रेख ।
या हित चिन्ह त्रिकोन कों कृप्ण-वरन में देख ॥१९॥|
घृक्ष के चिन्ह को भाव वर्णन
वृक्ष-रूप सब जग उअहै वीज-रूप दरि आप |
थातें तर को चिन्ह पग प्रगटत परम प्रताप ॥ १ !।
पुग्क
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