दिव्यावदान में संस्कृति का स्वरूप | Divyavadan Men Sanskriti Ka Sawrup

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Divyavadan Men Sanskriti Ka Sawrup  by श्याम प्रकाश - Shyam Prakash

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( शेर ) बरिच्लेश ४---प्रश्ज्या (क) प्रब्रज्या सर्वसाघारणा (ख) प्रन्नजित होने के नियम (ग) प्रब्रज्या-विधि (घ) प्रब्रज्याकालीन अनुष्ठेय कृत्य (ड) प्रब्रज्या-प्रहण का फल (व) प्रम्रज्या के कष्ट परिच्छेद ५--मैत्री परिच्छेव ६--दान परिच्ष्छेद ७--सत्य-क्रिया परिच्छेव ६ - षट्-पारमिता (१) दान पारमिता (२) शील पारमिता (३) क्षान्ति पार मिता (४) वीयें पारमिता (५) ध्यान पारमिता (६) प्रज्ञा पारमिता परिच्छेब ८--रूपकाय और धर्मकाय परिच्छेद १०--साप्रदायिक भगडे परिच्छेद ११ --नरक पबरिच्छेद १२--तीन यान वरिरुछेद १३- -घ्मे-देशना वरिच्छेद १४--कमें-पथ वरिच्छेद १५ -कर्म एवं पुतजेन्म का सिद्धान्त (क) पूर्व स्वकृत कर्मों पर विश्वास (ख) कर्मों का फल अवध्यभावी (ग) कर्म-विपाक १५७--१९४१ कक श् पृ श्घप १्घ्द १्द० र्द० १६० १२-१३ १ ६४१८७ श्द८--अरद २००-४२०३ २०० २०० २०१ २०२ २०३ २०३ २०४- २०४ २ ७६--२०५८ २०द-ए२१० २११-२१२ र१३--९३१४ र१५-२१६ २१७--२१६६ २१७ र(८ रे१६




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