सरल आध्यात्मिक प्रवचन | Saral Aadhyatmik Pravachan

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Saral Aadhyatmik Pravachan by श्री मत्सहजानन्द - Shri Matsahajanand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सरल श्राध्यात्मिक प्रवचन ११ परिशमन भी एक झ्रखण्ड है । उस समय दर्शन, ज्ञान, चारित्र थे तीनो एक ही प्रकारसे शोभा- यमन होते है । ( ११ ) स्वरूपाचरणातुमवमे प्रमाण नय निक्षेपका भी श्रनुद्योत--स्वरूपाचरणकी श्रचुभूतिके समय प्रमाण, नय, निक्षेपका प्रमाण अनुभवमें नहीं रहता, इस बातको समझनेके लिए एक अ्रध्यात्म पद्धतिपर भ्रायें । भ्रार्मवस्तु एक श्रवक्तव्य अ्रखण्ड है जिसे ज्ञायकस्वभाव के रूपमें कहा है । अब उस ज्ञायकस्वभाव अतरतत््वके € भेद बताये गए है। लोगोको समभने के लिए इस ज्ञानस्वरूपकी परख थे लोकिक जन कँसे करें ? जीव, भ्रजीव, भ्रासूव, बध, संबर, नि्जेरा, मोक्ष, पुण्य श्रौर पाप, ये € तत्व श्रभ्ूताथं कहे गए हैं, भ्र्थात्‌ जब्र हम भूताथ पद्धति से इन € नत्त्वोको देखने चलते हैं तो यह श्रभ्नताथ हो जाता है । वहाँ ज्ञायक स्वरूपमात्र ही एक जानमें रहता है । यह किस तरह ? ये जो € भेद हैं यह है ज्ञायकस्व भाव । श्रंतस्तत्त्व को समभझानेके लिए एक पर्यायका वर्णन है, भेदका वर्णन है। ती इस भेदको जब हम भुता्थ पद्धतिसे देखते है, भुताथका श्रथ॑ है-ये € पद कहाँसे झाये ? .श्रपने श्राप तो कोई पद है नहीं । इन ६ पदोका कोई स्रोत है, जिसके विवरण करके € पद दिखाये गए हैं । इसका ख्रोत है एक श्रतस्तत्व । भुता्थपद्धतिसे जब इन € तत्त्वोको परखने 'चले तो वहाँ € तत्व नहीं रहे, वह है एक ज्ञायकस्वभाव । यह ज्ञायकस्वभाव झ्रभी दृष्टिमे तो है भूताथपद्धति मे, मगर हृष्टिमे रहते रहते यह ज्ञायकस्वभाव दृष्टिमे नही रहता है, किन्तु एक ज्ञानस्वभाव हो जाता है । ऐसी स्थितिमे € पदार्थोंका भी उपदेश नहीं रहता । इसी प्रकार देखो कि प्रमाणाकी चीज क्या है ? ज्ञानका हो एक. पर्याय प्रमाण है, कोई परोक्ष प्रमाण है श्रौर कोई प्रत्यक्ष । जब भेददृष्टि करते है तब ही प्रमाणका स्वरूप सामने रहता है, किंतु जब सूताथ॑पद्धतिसे देखने चले इस प्रमाणको तो प्रमाणका खोत क्या है ? प्रंमाण तो. परिणति है । प्रमाणाका स्रोत है एक ज्ञानस्वभाव । अरब ज्ञानस्व भाव स्रोत हृष्टिमे रहा, प्रमाण अभूतार्थ रहा । यह ज्ञानस्वभाव भी दृष्टिम न रहा, एक परिणमन रहा । इसी प्रकार नय भी एक वस्तु है । ज्ञानका जो परि- रमन है, प्रशरूप जो जानन है उसका नाम नय है, तो नय भी अ्रभूत।र्थ॑ है । जब झ्भुताथं पद्धतिसे देखा तो यह नय क्या है ? ज्ञानके अश । लो ज्ञान मुख्य हो गया झश गौण । अभी तो दृष्टिम रहा तब तक विकल्प है श्रौर दृष्टिमे ज्ञान जब रहता है तो उसका प्रभाव ऐसा होता है कि यह ज्ञान है, ज्ञानस्वभाव है, यह विकल्प भो समाप्त हो जाता है । उस समय होता है ज्ञानपरिणमन । उस स्थितिमे नयका भी उद्योत नहीं रहता । इसी प्रकार तय भी क्या चीज है ? ज्ञानकी ही परिणतिका नाम ध्यान स्थापन करना । भेद पर्यायकी बातकों वर्तमान में कहना--यह सब बया है ? ज्ञानकी ही तो कला है । इसे जब भूताथंविधिसे देखते है ता 4ह




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