एक आदर्श समत्व योगी | Ek Aadarsh Samatv Yogee

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Ek Aadarsh Samatv Yogee by श्री सत्यदेव विदधालक्कार - Shri Satyadev viddhalakkar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सम्पादक की शोर से “विवय” तथा “श्रभिवादन” का भारतीय जीवन, दर्शन श्रौर संस्कृति में विशीष महत्व है । ये गुण समाज मे समय-समय पर विभिन्‍न रूपों मे प्रगट होते रहते है । रामायण श्रौर महाभारत सरीखे ग्रथो की रचना इन्ही की परिचायक है । वड़ो के प्रति यह विनय श्रौर अभिवादन कुछ वर्ष पहले सावंजनिक समारोहों एवं अभिनन्दन पत्रो द्वारा प्रगट किया जाता था । श्रभिनन्दन पत्रों की उस परम्परा ने झ्रव श्रभिनत्दन ग्रत्थो का रूप ले लिया है। यह ठीक ही कहा गया है कि “अ्रभिवादनशीलस्य नित्य बृद्धोपसेविन: । चत्वारि तस्य वर्घन्ते श्रायुविद्यायशोबलम्‌ ।।”' हमारे व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक किवा सार्वजनिक श्रौर राष्ट्रीय जीवन में भी ये दोनो गुण हमारे स्वभाव के श्रग बन गये है । गुरुकुल कागडी विश्वविद्यालय की स्थापना पुराने भारतीय श्रादर्शों की नीव पर की गई थी । वहां के जीवन में इन गुणों को सदा ही प्रमुख स्थान दिया गया । इसलिये जव मुझे ब्रादरणीय वयोदृद्ध मनस्वी श्रो रामगोपालजी मोहता के ८१-८२ वर्ष में शुभ पदा्पेरा करने के उपलक्ष में अझभिनन्दन हेतु इस ग्रन्थ के सम्पादन करने का निमन्त्रण मिला, तब मैने सहसा ही उसको स्वीकार कर लिया । मैने श्रपनी स्वीकृति के साथ यह भी लिखा कि यह पुनीत कार्य॑ बहुत पहिले ही हो जाना चाहिये था । वयोवृद्ध श्रद्धेय मोहता जी सभी दृष्टियों से हमारी श्रद्धा, सम्मान श्रौर श्रभिवादन के पू्णंत अधिकारी हैं । उनके प्रति हमारा यह कर्तव्य है, जिसका पालन केरने मे श्र श्रेंघिक देरी नहीं करनी चाहिए । राजस्थान भ्रथवा मारवाड़ी समाज मे जन्म न लेने पर भी उनके प्रति मेरा लगाव बहुत कुछ स्वाभाविक वन गया है। उनसे सम्बन्धित लोगो के प्रति मान-संम्मान व प्रतिष्ठा के प्रकट करने का साधारण सा प्रसंग उपस्थित होने पर भी मे उससे श्रलग नही रह सकता । १९२० मे, जब मेंने हिन्दी पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रवेश किया था, तभी मेरा उनके साथ सम्पर्क हो गया था श्रौर उसके निमित्त थे जैसलमेर के श्रमर शहीद श्री सागरमल गोपा । उन दिनों में भी वे सर पर कफन नाँघे जेसलमेर के लिये दहदीद होने की धरूमी रमाए रहते थे। स्वर्गीय देशभक्त सेठ जमनालालजी बजाज, कमेंवीर प० श्रर्जुनलालजी सेठी, अपनी लगन श्रौर धुन के धनी श्री विजयसिंहजी पथिक तथा ऐसे ही कुछ श्रन्य लोगो के साथ गोपाजी के ही माध्यम से मेरा परिचय हुँझा था श्रौर राजस्थान तथा मारवाडी समाज के प्रति मेरा लगाव बढता चला गया । राजस्थानियो अथवा मारवाडियों में ्रपने ही ढग की कुछ श्रदूभुत विशेपताएँ श्रौर विलक्षण गुण पाये जाते है। उनके सम्बन्ध में कैसी भी श्रान्त घारणाएँ क्यो न पैदा कर दी गई हीं, परन्तु में सदा ही उनके उन गुणों श्र विशेषताश्रो का कायल रहा हूँ । केवल एक उदाहरण लीजिये । भारत के कोने - कोने से छोटी-बड़ी वस्तियाँ वसाने ्रर उनको व्यापार-व्यवसाय व कल-कारखानो से समृद्ध करने




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