स्वर्गीय लाला लाजपतराय जी की आत्मकथा भाग - 1 | Swargiy Lala Lajapataray Ji Ki Aatm Katha Bhag - 1

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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० ्थ न# न श चर 4 “* ९ न्ह्व#ऋव कक के ७ ७» ० क + भर हल कि भिंड भह हथ प”# ४३ # ९ १/# के निज ऋजे अच. 3 व ओर देशभाक्ति शोर चारित्र की पवित्रता और श्रष्ठता से इनकारी नहीं कर सकता । लोग झंगरेज़ों के भय, अथवा अपने दो भाइयों से दुव्येवहार की श्राद्यज्मा से अपने असली विचारों को छिपा लगे । परन्तु इससे कोई इनकारी नहीं कर सकता कि जिन नोजवानों ने बंगाल में गोसाई की हृत्या का मनसूबा बांध कर, उसे पूण किया वह हमेदा के लिये श्रमर होगए । झभी समय श्ायगा कि जाति व देदद उन की समाधि पर फूल चढ़ाएंगे । इसी तरदद जिस श्रादमी ने १६१२ इई० के दिल्ली दरवार के मोके पर लाडे द्वार्डिक् पर बम फेंका उसने एक स्मरणीय याद रखने छायक कार्य किया । इस आदमी की दिलेरी व बद्दादुरी झपना सानी नहीं रखती । इससे भी अधिक होसला दिढाने वाली बात यद्द है कि एक धाक्किशाली शानदार साम्राज्य के सच साधन व दाक्कि उस वार का पता लगाने में आज तक असम साबित हुई दे । यदद तमाम बातें निःसन्दद्द होसला व श्राशा दिलाने वाली हैं । यह सब कुछ होते हुए भी जो श्रादमी अपने देदा की असली अवस्था को जानते हैं वह चित्र के स्याह्द रंग को देखकर, झोर इसके परिणाम निकाले बिना नहीं रद्द सकते कि देश की राजनैतिक अवस्था कया है ? मेरी सम्मति में




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