सत्पथ - दर्पण | Satpath - Darpan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
208
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)डे
(ओसवाल) की दिगम्बर आम्नाय मे आस्था समयसार ग्रन्थ का स्वा-
ध्याय करने के अनन्तर ही हुई ।
श्री कहान जी स्वामी [जिनका प्रचलित सुगम नाम श्रीकान जी
स्वामी है ।] स्थानकवासी साछु थे, आपने भी सौभाग्य से समयसार का
स्वाध्याय फिया और श्री कुन्दकुन्द आचायें के भक्त बनकर आपने भी
दिगस्बर-आम्नाय मे प्रवेश किया है । धर्माचुराग-वदा हमारे हृदय मे
उनका अच्छा आदर सन्मान है ।
जहाँ आपने स्थानकवासी सम्प्रदाय की विचार-घारा का परित्याग
करके दिगम्बरीय विचार धारा को अपनाया, वहाँ आपने अभी तक
[लगभग २४ वर्ष से] न तो महाब्रती मुनि चारित्र का आचरण किया
और न अणुन्नती चारित्र का आचरण किया । यद्यपि आप ८वी प्रतिमा
का आचरण सुगमता से कर सकते है परन्तु आपने अभी तक पहली'
दूसरी तीतरी आदि किसी भो प्रतिमा का आचार ग्रहण नहीं किया ।
इसी कारण वे अपने आपको अविरती कहते है ।
इसका कारण यह प्रतीत होता है कि पहले तो आप महाब्रती
साथु थे, परन्तु अब श्री कुन्दकुन्द आचारयं के अनुसार दिगम्बर महाब्रती
साधु बनना तो आपको संभवत: अशव्य दीखता है और पूर्ववर्ती
महाब्रती से श्रावक-आचार ग्रहण करने मे आपको संकोच होता है । इसी
कारण आप ऐलक क्षुल्लक या श्रावक ब्रत आदि किसी भी पद का
आचार ग्रहण नहीँ करते ।
इसके सिवाय ऐसा भी जान पडता है; कि आप कुछ सुखाभ्यासी
बन गये हैं, अत: ब्रत तप संयम आपको अपने लिये कठिन प्रतीत होता -
है। अस्तु', कुछ भो हो । आप अनगार और नेष्टिक सागार आचार मे
से कोई भी चरित्र ग्रहण नहीं 'करना चाहते, तो न करें, इसमे तो
आपकी ही आध्यात्मिक हानि लाभ का' प्रदन है, किन्वु आपका एक
'घ्म-प्रचारक के नाते यह मुख्य कतंव्य है कि आप अपने अनुयायी भक्तों
है
गन
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