बापूकी झाँकियाँ | Bapuki Jhakiyan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
129
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कहा--' मैं ठग अपनेको ही दिये देता हूँ। तुग्दारे साथ जायूंगा और
जितनी हो सके तु्दारीं मदद करूँगा 1* दोनों दक्षिण अफ्रीका गये।
ंप्रिज़ेकि थीच रदनेके कारण बापू अंप्रेजेंको शद पहचान छेठे हैं । व्दों
जाते ही ये दोनों मित्र गाँधीजीके मी मित्र बन णये | मिस्टर उेंडरभूसने
गांधीजीसे कहा -- ' आयन्दा में तुम मोहन कहूँगा, तुम मुझे चार्ली
कहना 1 तबसे जिन दोनोंका सम्बन्ध मा-जाये भाशियों जैसा रहा । जब कंभी
मिस्टर अेंद्रयूतत विदेशसे हिन्दुस्तान आते, तो कुछ दिन पहले नज़दीकफे
बन्दरसे 10 (०020 10४6 दिणणा (कप यदद केबल (तार)
मेने पिना अुनसे नहीं रहा जाता । जिस तरदसे पैसा खर्च करना बापूफो
अखरता तो बहुत था, लेकिन भुनको मना करनेकी हिम्मत भुन्होंने कभी
नहीं की ।
मिस्टर मेंद्र धज़का स्वभाव कुछ मुल्कना था । नहाने जाते वहीं
घड़ी भूल जाते । किसीसे चुछ छेते अथवा देते, वदद भी अवसर भूल
ही जाते । शिसलिजे जब बाए भुन्हें कहीं भेजते तो ज्यादा पैसा देकर
भेजते थे, और देँसकर कहते थे--' भ्रुलकर खोनेके लिमे भी सो कुछ
देता चाहिये ।” वे कभी पैसेका दिसाव नहीं रखते थे। लौटने पर जेबें
बुछ पैसा बचता; तो अपने मोइनको वापिस दे देते थे ।
मैंने देखा कि आगे जाकर मिस्टर भेंद्रडूल़ मापूको मोइन नहीं
कद सके । इम लोगोंकी देखादेखी वे भी बाप ही कहने लगे |
७
श९१५ का दिसम्बर होगा । बम्बऔीमें कांग्रेसक! अधिवेशन था |
बापू अपने आभमवासियोंको लेकर मारवाड़ी विद्यालयमें ठदरे थे । मैं अन्य
जगद उदरा था; लेकिन बहुतेसा समय बापूफे पाप ही गुजास्ता या ।
अेक दिन सुनें कट्टीं जाना. था । डेस्क परकी सब चीजिं थे सैभालकर
रखने लगे । देखा हो कोझी चीज़ वे हूँ रे है, बढ़े परेशान हैं। मैंने
घुछा -- ' बापूजी कया हूँढ़ रहे हें ! ?
*' मेरी पेन्सिल । छोटीसी है। ”
User Reviews
No Reviews | Add Yours...