सुदर्शन सेठ को व्याक्यान | Sudarsan Sath Ko Vyakyan

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Sudarsan Sath Ko Vyakyan by आचार्य सुदर्शन देव - Acharya Sudarshan Dev

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सुदर्शन सेठ च्सो व्याख्यान । श्श 771 क० । आग पाछल सोचे नवी रे ठाठ, एहवी छ॑ नार / दा अजोग 1 क० ॥ रै० ॥ ॥ दोहा ॥ जेहने जेहवी इच्छा उपनें, तेदिज करे उपाय । विगड़ो भावें सुधरो, भाव ज्यूं होय जाय ॥ १॥ कपिठा विरहद व्यापी थकी, करें अनेक उपाय । दाव कोई ठागे नहीं, सेठ मिलण री चाहय ॥ २ ॥ कपिठा केरो थिरधणी, गयो किणही एक गांव | सेठ छेवा ने दासी मोकली, झूड़ी वात चनाय ॥ ३ ॥ जे कर स्याही घोठिये, सात समुद्र जठ आण । कागद एतो आणिये, तीन लोक प्रमाण ॥ ४ ॥ सर चनस्पति आण ने, तेहनी कठम कराप । तिरिया केरा चरित्र ने. ठिख जो जुक्त लगयाय ॥ ४ ॥। सर्व स्याही कागद ख्पे, करूम सचे खप जाय । वरिया चरित्र तो छे घणो, न लिर्पयों किंपी ठिखाय !1६1। प्रिया में अबयुण घणा, भाप्या थी लिनराय । तंदुचियालिया अन्थ में, दीघा तिहां चताय ॥ ७ ॥




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