संक्षिप्त बाल - हितोपदेश | Samchipta Bal Hitopadesh

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Samchipta Bal Hitopadesh by आचार्य सुदर्शन देव - Acharya Sudarshan Dev

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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1: १४५ 3 चस्तें ) का लाम होने-पर सौ । श्वया्ने-घन के शजेत-कमाने-में 1 « . ब्यास्या-लित्र्ीव कहने लगा कि एक जार दक्षिण के «घंगल में- घूमते हुए: मैंने देखा कि कुश दा में धारण करने वाला स्नान किये हुए पक सूद बाघ सरोदर के तट पर. बता दे-दे पशथिकों | इस सोने के कंगन वो प्रइण करो । लालच के वशीभूत होने वाले किसी यात्री ने ( दाघ के वचन रुम कर 3 रोचा--यदद सर माग्य से दोता हे--माप्य का खेल दे । परन्तु शरीर को नष्ट करने वाले ( इस बाघ से ) शत्ति-जीविका-प्राप्त करना ( कंगन लेना ) उचिठ नहीं, ब्रयोंकि यद दिंसफ है । अनिषटातू: तथापि म्रत्यवे ॥॥ १५0 ब्याख्या--कद्दा भी दै श्रप्रिय से प्रिय वस्तु के प्राप्त ्ोे पर शुम गति नहीं दोती श्ररथत्त्‌ बर्याण नहीं होता है । जिस श्रमृत में लरा सा भी बिप मिला होता है बह ऋघश्य ही सत्यु कर देता हे । फिर भी देखा जाता है कि सभी जगह धन प्राप्त बने में रन इ शक होता ही है । मनुष्य जच्र रिस्‍्क ( खतरा ) उठाता है तब ही उसे घन वी मात्ति देती है श्न्यया नदी । कक , तथा स उत्तमल्यौर वैरा दी बहा गया है। न संशप्रमनारदय' ***** यदि जीवति पश्यतिं १६0 'त्यय->तरः संशयम्‌ श्रनाध्यय भदाणि ने परयति | संशयम्‌ शाह यदि सीवति पुनः पश्यति 1 शब्दाथे--्रनाददयविना चढ़े-बिना सवार हुए । मदाशिष्सवस्याण हे ब्यास्या--मनुष्य संशय-सन्देइ में विन] पड़े, बल्दाण गहीं देखता शर्थात्‌ 'रिस्क ( खतरा ) उठाये बिना मनुष्य ब्रा बल्यगश नहीं होता, उत्ते धन डाद की प्राष्सि नहीं होती हे । संशय पर चढ़ बर श्रर्धात्‌ रििक॒ उटा कर यदि व्द्द जिग्दा रहता है तो मिर कष्याण के दर्शन बर पाता है । तात्पर्य यदद हे कि जान फोम में डाले त्रिना-रिस्क उठाये दिना कमी सुख नहीं पा सकता है 1 सस्निरूपयामि तावत्‌* कथें न विश्वासभूमि: । / समास--वंश-दीनः्वशेन दन इति-तत्पुरुष । गलद-नख ना: दन्ता: च॑ यस्य सः्नहुबीदि दे शुभ रुनना-किया, परस्मेपद, श्याशा लोटू, “मध्यम पुरुष,




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