केशव में अप्रिस्तुत योजना | Keshav Me Apristut Yojana
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
246
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पं रामदहिन मिश्र - Pt. Ramdahin Mishra
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)फ झप्रस्तु्तयोजना : 'पकंकार
है । इसमें कवि .की श्रपनों नुभति दै 'झोर उसकी श्रपनी योजना है | इस
दशा में यदद उपमान भी कद्दा जा सकता है ! साभिप्राय विशेषण में परिकर
श्रलंकार शेता टै । उसमें भी उपमान की चात कह्टी ला सकती है, पर सामान्य
विशेषण की श्रपेक्ता साभिप्राय विशेषण में एक वेलक्षएय होता दे )
किन्ठु चिरद्द वृद्धिक ने 'झाकर 'झब यद्द सुकको घेरा ।
गुणी गारुड़िक दूर खड़ा तू कोठुक - देख न सेरा । गुप्तघी
गादड़िक श्रर्थात् तंत्र-मंभज्ञ विशेषण से यद्द व्यक्त दोता दै कि विरद्द वृद्चिक
के दंशन से मुक्त करने में तू दी समथ है | व दी विरदब्यया दूर करनेवाला है ।
छपी सी पी सी झठु मुस्कान
छिपी सी ख़िंची सखी सी साथ | ' पंत
इसमें 'छुपी” श्रौर 'पी” दोनों क्रियाएं हैं | की
इसके श्रोठों पर उसकी मुसकान ऐसी प्रतीत दोती भी जेसे उसके
मुख पर छाप दी गयी हो | बद्द हंसी जेमे पी गयी दो, पर वह पीना यभार्थ
नहीं था | इन क्रियाश्ों की योजना श्रप्रस्तुत की सीमा में श्रा सकती हे,
श्र इनमें उपमान का भी भाव है । दोनों के नाम यथा हैं |
फिर झतपदररशपददााववयसवला
तीसरा रंग--अग्रस्तुतयोजना : अलंकार
.. उपमेय, श्ौर उपमान के स्पान पर श्रालकल अधिकतर प्रस्तुत श्रौर
प्रस्तुत ही का व्यवद्दार किया जाता है । उपमेय को प्रासंगिक, प्राकरणिक,
प्रकूत तथा प्रधान श्रौर उपमान को श्रप्रासंगिक, श्रप्राकरखिक, श्रप्रकूत तथा
प्रधान भी कहते हैं | प्रस्तुत और श्रप्रस्तुतत नये शब्द नहीं हैं। ,. ..
श्रलंकार-शाख्र में “श्रप्रस्तुत-प्रशंसा” नामक एक श्रलंकार है । उसमें
प्रस्तुता श्रय प्रस्तुत का वणन द्ोता है । श्रर्थात् प्रस्तुत के लिये श्रप्रस्तुत का
कथन, किया जाता दै । यदद कथन सम्ब्रन्घ-विशेष पर निर्भर है ।
_. श्प्रस्तुत अनेक प्रकार के हो सकते हैं श्र उनकी योजना भी- श्रनेक
प्रकार की दो सकती है । कल्पना की कोई सीमा नहीं । एक-दो उदाइरण लें--
सरभि बस जो 'थपकियाँ देता मुभे; गए
स्वप्न के उच्छवास-सा वह,कौन है ? मददादिवी' -
प्रस्तुत परमात्मतरव के लिये “कौन” भी प्रस्तुत कहा जा सकता है ।
“स्वप्न के उच्छूवास-सा” यह श्रप्रसतुतयोजना “कौन” के लिये है । इससे “कौन?
| भगद
User Reviews
No Reviews | Add Yours...