केशव में अप्रिस्तुत योजना | Keshav Me Apristut Yojana

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Keshav Me Apristut Yojana by पं रामदहिन मिश्र - Pt. Ramdahin Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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फ झप्रस्तु्तयोजना : 'पकंकार है । इसमें कवि .की श्रपनों नुभति दै 'झोर उसकी श्रपनी योजना है | इस दशा में यदद उपमान भी कद्दा जा सकता है ! साभिप्राय विशेषण में परिकर श्रलंकार शेता टै । उसमें भी उपमान की चात कह्टी ला सकती है, पर सामान्य विशेषण की श्रपेक्ता साभिप्राय विशेषण में एक वेलक्षएय होता दे ) किन्ठु चिरद्द वृद्धिक ने 'झाकर 'झब यद्द सुकको घेरा । गुणी गारुड़िक दूर खड़ा तू कोठुक - देख न सेरा । गुप्तघी गादड़िक श्रर्थात्‌ तंत्र-मंभज्ञ विशेषण से यद्द व्यक्त दोता दै कि विरद्द वृद्चिक के दंशन से मुक्त करने में तू दी समथ है | व दी विरदब्यया दूर करनेवाला है । छपी सी पी सी झठु मुस्कान छिपी सी ख़िंची सखी सी साथ | ' पंत इसमें 'छुपी” श्रौर 'पी” दोनों क्रियाएं हैं | की इसके श्रोठों पर उसकी मुसकान ऐसी प्रतीत दोती भी जेसे उसके मुख पर छाप दी गयी हो | बद्द हंसी जेमे पी गयी दो, पर वह पीना यभार्थ नहीं था | इन क्रियाश्ों की योजना श्रप्रस्तुत की सीमा में श्रा सकती हे, श्र इनमें उपमान का भी भाव है । दोनों के नाम यथा हैं | फिर झतपदररशपददााववयसवला तीसरा रंग--अग्रस्तुतयोजना : अलंकार .. उपमेय, श्ौर उपमान के स्पान पर श्रालकल अधिकतर प्रस्तुत श्रौर प्रस्तुत ही का व्यवद्दार किया जाता है । उपमेय को प्रासंगिक, प्राकरणिक, प्रकूत तथा प्रधान श्रौर उपमान को श्रप्रासंगिक, श्रप्राकरखिक, श्रप्रकूत तथा प्रधान भी कहते हैं | प्रस्तुत और श्रप्रस्तुतत नये शब्द नहीं हैं। ,. .. श्रलंकार-शाख्र में “श्रप्रस्तुत-प्रशंसा” नामक एक श्रलंकार है । उसमें प्रस्तुता श्रय प्रस्तुत का वणन द्ोता है । श्रर्थात्‌ प्रस्तुत के लिये श्रप्रस्तुत का कथन, किया जाता दै । यदद कथन सम्ब्रन्घ-विशेष पर निर्भर है । _. श्प्रस्तुत अनेक प्रकार के हो सकते हैं श्र उनकी योजना भी- श्रनेक प्रकार की दो सकती है । कल्पना की कोई सीमा नहीं । एक-दो उदाइरण लें-- सरभि बस जो 'थपकियाँ देता मुभे; गए स्वप्न के उच्छवास-सा वह,कौन है ? मददादिवी' - प्रस्तुत परमात्मतरव के लिये “कौन” भी प्रस्तुत कहा जा सकता है । “स्वप्न के उच्छूवास-सा” यह श्रप्रसतुतयोजना “कौन” के लिये है । इससे “कौन? | भगद




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