महाभारत भीष्म पर्व | Mahabharat Bhishm Parv

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ अध्याय | # # अध्याय ४ भापाधवाद-सछति # है कालपर्व्यायमाज्ञाय मां सम शोके मन कथा: यदि चेच्छसि 7 संग्राम द्र्मेतान विशाम्पते ! चज्लुर्ददानि हे पुन युद्ध तत्र निशामय | ॥ ६ ॥ दबाव । न रोचये ज्ञातित्रथ दर, जह्मपिसत्तम । | ६ युद्धमेतत्तशेषण श्रूशुपां तब तेजसा ॥ ७ ॥ वैशम्पायन उवाच | | ६ प्तस्मिन्नेच्दति दे, संग्राम श्रोहुमिचडत्ति । दराजणामीश्वरो व्यासः £ सज्ञपाय बरें दी ॥८॥। एप ते राजन युद्धमेतद्वदिष्यति । |/ हैं एतरप सर्वसंग्रामे न परोक्षं भविष्यति ॥६॥ चलुपा संजया राजन, ६ | रिव्पेनेव समन्घितः । ते युद्ध सर्वज्ञषय मविष्यति॥१०॥। प्रक्नाश॑ं था दिवां था यदि वा निशि | मनसा छिन्तित- | ं मपि सर्वे बेत्स्थति संजय ॥ ११ ॥ नेन॑ शख्राणि छेत्स्यन्ति नेन॑ | अभि | लिये इन सबका झपश्य हो नाश दोगा, समय को पल्नटा हुआ | जानकर हू अपने मनकोा शो कर्मे न डुचा॥४॥ है राजन्‌ | यदि तू | इनको संग्राममें लड़ते हुए देखना चाहता हो तो हे पुत्र ! में हुक ! इनका युद्ध देंखनेके छिये नेत्र दूं ? और दू सुखसे शंग्रामको देख |! - ॥ दे ॥ कहा, कि-दे ब्रह्म्पियों में, श्रेष्ठ ! झपने संघन्धी मारे जाते हो,इस दृश्यकों देखना मुभके,झच्छा नहीं खगठ।, परन्तु | आपकी कृपा हो तो में सब समाचार छुनना चाहता हूँ / ॥ ७ ॥ बेशम्पायनजी कहते हैं, कि-राना जनमेजय ! युद्धकों !! प्रत्यक्ष देखना तो नहीं परन्तु चाहते हुए श्रतराष्ट्रके जिये, वरदान देने वालोंमें. श्रष्ठ व्यासजीने सल्नयकों वरदान दियां ॥ ८ ॥ आर छतराष्ट्रसे कहा, कि-हे .राजन्‌! रणयूमिपें जो युद्ध होगा उसकी यह सझय नित्य तुम्हें सुनावेगा और सब संग्राम कोई वात ऐसी नहीं होंगी, निसकों यह सश्प्रय प्रत्यक्ष न देख सकफ | & ॥ हे राजन्‌ ! इसप्रकार दिव्यदृष्टिको प्राप्त | । हुआ'यदद सज्ञय रणम नो क्र घटनां दागी बह सब तुमे छुना ? देगा और उसका स्वेज्ञनां मां होगा ॥ १० ॥ मत्यक्त वा | न पीछे सतमें वा दिनमें तथा मनमें विचारी हुई वातको भी सझ्य | | ज्ञान सकेगा ॥ ११ ॥ इसके शख्र कांट नहीं * सकेंगे, परिश्रम !! कि [# री




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