महाभारत भीष्म पर्व | Mahabharat Bhishm Parv
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
50.61 MB
कुल पष्ठ :
842
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)६ अध्याय | # # अध्याय ४ भापाधवाद-सछति # है
कालपर्व्यायमाज्ञाय मां सम शोके मन कथा: यदि चेच्छसि
7 संग्राम द्र्मेतान विशाम्पते ! चज्लुर्ददानि हे पुन युद्ध तत्र निशामय |
॥ ६ ॥ दबाव । न रोचये ज्ञातित्रथ दर, जह्मपिसत्तम । |
६ युद्धमेतत्तशेषण श्रूशुपां तब तेजसा ॥ ७ ॥ वैशम्पायन उवाच | |
६ प्तस्मिन्नेच्दति दे, संग्राम श्रोहुमिचडत्ति । दराजणामीश्वरो व्यासः
£ सज्ञपाय बरें दी ॥८॥। एप ते राजन युद्धमेतद्वदिष्यति । |/
हैं एतरप सर्वसंग्रामे न परोक्षं भविष्यति ॥६॥ चलुपा संजया राजन, ६
| रिव्पेनेव समन्घितः । ते युद्ध सर्वज्ञषय मविष्यति॥१०॥।
प्रक्नाश॑ं था दिवां था यदि वा निशि | मनसा छिन्तित- |
ं मपि सर्वे बेत्स्थति संजय ॥ ११ ॥ नेन॑ शख्राणि छेत्स्यन्ति नेन॑ |
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| लिये इन सबका झपश्य हो नाश दोगा, समय को पल्नटा हुआ |
जानकर हू अपने मनकोा शो कर्मे न डुचा॥४॥ है राजन् | यदि तू |
इनको संग्राममें लड़ते हुए देखना चाहता हो तो हे पुत्र ! में हुक !
इनका युद्ध देंखनेके छिये नेत्र दूं ? और दू सुखसे शंग्रामको देख |!
- ॥ दे ॥ कहा, कि-दे ब्रह्म्पियों में, श्रेष्ठ ! झपने संघन्धी
मारे जाते हो,इस दृश्यकों देखना मुभके,झच्छा नहीं खगठ।, परन्तु |
आपकी कृपा हो तो में सब समाचार छुनना चाहता हूँ /
॥ ७ ॥ बेशम्पायनजी कहते हैं, कि-राना जनमेजय ! युद्धकों !!
प्रत्यक्ष देखना तो नहीं परन्तु चाहते हुए श्रतराष्ट्रके जिये,
वरदान देने वालोंमें. श्रष्ठ व्यासजीने सल्नयकों वरदान दियां
॥ ८ ॥ आर छतराष्ट्रसे कहा, कि-हे .राजन्! रणयूमिपें जो
युद्ध होगा उसकी यह सझय नित्य तुम्हें सुनावेगा और सब
संग्राम कोई वात ऐसी नहीं होंगी, निसकों यह सश्प्रय प्रत्यक्ष
न देख सकफ | & ॥ हे राजन् ! इसप्रकार दिव्यदृष्टिको प्राप्त |
। हुआ'यदद सज्ञय रणम नो क्र घटनां दागी बह सब तुमे छुना ?
देगा और उसका स्वेज्ञनां मां होगा ॥ १० ॥ मत्यक्त वा |
न पीछे सतमें वा दिनमें तथा मनमें विचारी हुई वातको भी सझ्य |
| ज्ञान सकेगा ॥ ११ ॥ इसके शख्र कांट नहीं * सकेंगे, परिश्रम !!
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