बेकारी | Bekari
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
175
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)वेंकारी
हिन्दू होस्टल में ४४ नम्यर का कमरा , गम्दा-घूल से धटा हुआ ।
दो घारपाइयों पर मैसे विस्तर--एक मेज पर बहुत-सी पुस्तकें--
सिगरेटों का डिस्दा, फलमदान, ध्रोर कुछ नगदी । एक चारपाई
पर इयामसुन्दर माल दिखेरे, शोक में दूया हुमा है; प्रौर सिगरेट फे
कश लगाकर घूएं के 'वदकर हुवा में छोड रहा है। भ्रचानक दरवासे
से भंयालाल प्रवेश करता है--लम्वा, दुदला-पतला जवान है--गात
शन्दर को पिचके हुए, चेहरा पीता--एम० ए० पास । ]
भेयालाल (चारपाई पर बैठकर) --श्राज चह बदला लिया कि उम्र-
भर याद रगखेगी । यदद ऊँचे वर्ग के लोग न जाने क्यों हमे कीढि
मकोर्दों से भी तुच्छ समभते हैं !
इयामसुन्दर (एक उदास मृस्कान से) -क्या बात हुई, किससे बदला
लिया * दद्द भाग्यद्दीन कौन है १
भेयालाल--बेद्दी तो है, डाक्टर घनश्यामलाल की पत्नी, जमना ।
श्रोदद | परन्तु दुम उसे नहीं जानते । मोटी, सावली-सी है--दो
बच्चे हो जाने पर भी एफ० ए० में पढती है | में तीन महीने
से उत्ते इतिहास पढ़ा रहा हूँ । समझ में नददीं श्राता कि स्त्रियों
दो इतिहास की क्या जरूरत है। इन्दें तो चूल्दा नादिए ।
सर, हमें तो श्रपने पैसों से काम है । दो घंटे पढ़ाता हूँ, पन्द्रद
रुपये मिलते हैं |
द्पामसुन्दर--श्रालकल यही बहुत है ।
न रख 5
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