पत्थर और आँसू | Patthar Aur Aanshu

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Patthar Aur Aanshu by रेवती सरन शर्मा - Revati Saran Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१८ इला : येलेद्र: सला: शेलेन्द्र : पत्थर 'प्रोर झाँसु गया । रब मैं जीवन भर के लिए तुम्हारे हाथों बिक गया हूँ। पर मुझसे श्रव किसी रहम, किसी प्यार की उम्मीद न रखो । तुम्हारा यह सब कुछ कहना मेरे लिए खूशी की बात नहीं है शेलेन्द्र । लेकिन मैं पहले भी दिल से मजबूर थी, श्रौर श्रब भी मजबूर हूँ । अ्रगर मेरा प्यार तुम्हारी जहर भरी बातों से मर सकता तो कभी का मर गया होता । मैं तुम्हारे साथ रहना चाहती थी श्रौर रहूँगी । तुमने मुझे श्रपनी बनाकर संसार के सामने लज्जित श्रौर तिरस्कृत होने से बचा लिया है । भ्रव जो सज़ा भी तुम दोगे, मैं खामोशी से, खुशी से, बिना उफ़ किये सह्‌ लूंगी । (चिल्लाकर) बस, बस, हल श्रौर ढोग का यहु खेल श्रव बन्द करो । (सहमकर) भगवान्‌ के लिए धीरे बोलिये । डाक्टर ऊपर ही हैं। वे सुन लेंगे) (बड़ी क्रूरता से) वे सुन लें, यही तो मैं चाहता हूँ । अब तक वे श्रौर सव यही सोचते हैँ कि मेरा श्रौर तुम्हारा प्रेम-विवाह है) मैं भी तुमसे विवाह करने के लिए उतना ही भ्रातुर था जितनी कि तुम । लेकिन अब मैं सबको श्रसलियत से श्रागाह्‌ कर देना चाहता हूं । मैं उन्हें बता देना चाहता हूँ कि मैंने प्यार नहीं किया, प्यार की कीमत श्रदा की है । : श्राप बार-बार इस फ़िकरे को दुहराकर मुभ क्यों तकलीफ़ पहुँचाते हैं ? श्रगर श्राप यही सोचते हैं कि मैंने ज्यादती की है सुदगर्जी से काम लिया है, तो मुझे घर में सजा दे लीजिए । दूसरों के सामने तो बेइज्ज़त न कीजिए । : (बड़ो कररता से) लेकिन तुमने क्या कियाथा? तुमने भी तो कहा था कि श्रगर मैं शादी नहीं करूँगा तो तुम मुझे बद- ( म ५




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