बेकारी | Bekari

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Bekari  by रेवती सरन शर्मा - Revati Saran Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वेंकारी हिन्दू होस्टल में ४४ नम्यर का कमरा , गम्दा-घूल से धटा हुआ । दो घारपाइयों पर मैसे विस्तर--एक मेज पर बहुत-सी पुस्तकें-- सिगरेटों का डिस्दा, फलमदान, ध्रोर कुछ नगदी । एक चारपाई पर इयामसुन्दर माल दिखेरे, शोक में दूया हुमा है; प्रौर सिगरेट फे कश लगाकर घूएं के 'वदकर हुवा में छोड रहा है। भ्रचानक दरवासे से भंयालाल प्रवेश करता है--लम्वा, दुदला-पतला जवान है--गात शन्दर को पिचके हुए, चेहरा पीता--एम० ए० पास । ] भेयालाल (चारपाई पर बैठकर) --श्राज चह बदला लिया कि उम्र- भर याद रगखेगी । यदद ऊँचे वर्ग के लोग न जाने क्यों हमे कीढि मकोर्दों से भी तुच्छ समभते हैं ! इयामसुन्दर (एक उदास मृस्कान से) -क्या बात हुई, किससे बदला लिया * दद्द भाग्यद्दीन कौन है १ भेयालाल--बेद्दी तो है, डाक्टर घनश्यामलाल की पत्नी, जमना । श्रोदद | परन्तु दुम उसे नहीं जानते । मोटी, सावली-सी है--दो बच्चे हो जाने पर भी एफ० ए० में पढती है | में तीन महीने से उत्ते इतिहास पढ़ा रहा हूँ । समझ में नददीं श्राता कि स्त्रियों दो इतिहास की क्या जरूरत है। इन्दें तो चूल्दा नादिए । सर, हमें तो श्रपने पैसों से काम है । दो घंटे पढ़ाता हूँ, पन्द्रद रुपये मिलते हैं | द्पामसुन्दर--श्रालकल यही बहुत है । न रख 5




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