वैराग्य तरंग गुरु काव्य गुंजन | Vairagye Tarang Guru Kavya Gunjan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
340
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आंत्रिक॑ं उर्मीओ
कि राझल
अजब ! मस्ती जीवन जागी, अखैडानंद उभरायो;
वहां झरणां कृपा सिंधु, रच्यां काव्यो अति हें
नथी विद्वान के वक्ता, कविज्न ज्ञान अंतरमां;
कूंपा ए इ्टनी प्रगटी, रच्यां काव्यो अति हर्ष
भ्रमण करतो हतों जगमां, मव्यया महापुन्यथी साचा;
भभो ए दिव्यनी छाया; रच्यां काव्यो अति हरे.
हतो हुं शोधभां जेनी, युरुवर ए मव्या सुजने;
प्रभो ! शांति सूरीश्वरजी, रच्यां काव्यो अति हर्षे.
समप्यु छे जीवन सघढ्ध॑, स्वीकार्या अतरे सहारा;
जीवन तारक परभो साचा, रच्यां काव्यो अति हर्ष.
परमहूर्षे पडचो चरंगे, मूक्युं मस्तक कूपा सिंधु;
उषाव्यो घोध अंतंरमां, रच्यां काव्यों अति हें.
सदाए दिव्य झरणांथी, हुषा म्हारी छीपाईु ऊुँ;
करूं छु स्नान हुं एमां, रच्यां काव्यो अति हषे«
अरे हूं मूठ बुद्धिनो, नथी कंइई ज्ञान म्हारामां;
अकारो छागतों सहुने) रच्यां काव्यो अति हर्षे
बन्युं आ शुं अभो आजे, अजब शक्ति खीलावी छं;
पुरी मस्ती . जगावी तें, रच्यां काव्यो अति हर्पे.
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