आनन्दघन - ग्रन्थावली | Aanandaghan Granthavali
श्रेणी : काव्य / Poetry
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
438
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about उमराव चन्द जैन - Umarav Chand Jain
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( रे )
मेल बनाने वाली वनादी है, जो 'सहजानद पदावली' श्रादि में प्रकाशित भी हो
चुकी है ।
पद बहुतरी
श्रानदंघनजी की दूसरी प्रमुख रचना है--गीत दुपद या श्राव्यात्मिक
पदावली । योगीराज ने समय-समय पर श्रपने हृदयोदगार श्रौर श्रनुभूति के
व्यक्तिकरण रुप जो पद-भजन बनाये हैं, वास्तव मे वे एक ही समय पर नहीं
बने थे इसलिए पद-सग्रह का नाम “'वहोत्तरी' आदि उनकी श्रोर से नही रखा गया
था। प्राचीन प्रतियों में वहोत्तर (७२) पद मिलते भी नहीं हैं, किमी में
चालीस-पेतालीस के करीब है, किसी में साठ-सत्तर । श्रत उच्नीसवी शताब्दी में
किसी सम्रहकर्त्ता ने श्रानदघनजी के प्राप्त पदों का सग्रह किया श्रौर उनकी
सरया चौहत्तर-पचहत्तर के लगभग हो गई तव शायद पद सम्रहू का नाम
वहोत्तरी रख दिया गया । सबत्ु १८५७ की लिखी हुई प्रति हमे प्राप्त हुई है
जिसमें ७४-७६ पद है पर उसमे पद सम्रह का नाम वहोतरी नहीं दिया हैं
परन्तु झ्रानदघनजी के सर्वाधिक मर्मन्न श्रीमदु ज्ञानसागरजी ने झ्रानदघनजी के
श्रनुकरण मे जो चौहत्तर पद बनाये है उनका नाम उन्होंने 'वहोतरी' रखा है ।
भ्रत उन्नीसवी शताब्दी मे आनदघनजी का पद सम्रह वहोतरी' के नाम से
प्रसिद्ध हो गया. मालूम देता है ।” इसके वाद चिंदानन्दजी ने भी समय-समय
पर जो पद स्तवन बनाये उनकी सख्या भी वहत्तर (७२) तक पहुँच गई ।
म्रन चिदानदजी की वहोतरी प्रसिद्ध हो गई । वहत्तर (७२) संख्या का श्राक
पंण भ्रठारहवी शताब्दी मे रहा है । जिनरगसुरिजी ने वहततर पद्यों वाली एक
रचना को जिनरग वहोतरी नाम दिया जौ श्रठारहवी शताब्दी के पूर्वाद्ध की
रचना है ।
स्तवनो एव पदो के समर्थ विवेचक ज्ञानसारजी
थीमदु ज्ञानसारजी ने झानदघनजी के स्तवनों शऔर पदों पर वर्षों तक
गौर चितन किया था । चौवीसी वालाववोब में ज्ञानसारजी ने सुपष्ट लिखा
१” हमे प्रवत्तक कातिविजय के सग्रह की स० १८९० की प्रति में बहुतरी
नाम लिखा मिला है। इससे पहले की स० १८७१ की बनारस की
प्रति के अल में बहुतरी' लिखा है । दे जे गु के भाग 3
User Reviews
No Reviews | Add Yours...