ओझा निबन्ध संग्रह भाग - 2 | Ojha Nibandh Sangrah Bhag - 2
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
291
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about महामहोपाध्याय राय बहादुर पंडित गौरीशंकर हीराचन्द्र ओझा - Mahamahopadhyaya Rai Bahadur Pandit Gaurishankar Hirachand Ojha
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)म्रस्तावना हा
चौथा लेख चित्तौड़ के किले पर गुजरात के सोलंकी राजाओं के अधिकार के
विपय में है | इसकी दूसरी पंक्ति में वि० सं० १९०७ के स्थान पर गलती से
सं० ११०७ छूप गया हैं । कुमारपाल ने सब्जन को चित्तौड़ का दर्डनायक बनाया ।
इसके नायक का उल्लेख केवल जैन मंथों में ही नहीं,स्वयं चित्तौड़ के एक शिलालेख में
भी वर्तमान है । शाकम्भरी और अजमेर के अधिश्वर और कुमार पाल के प्रवल शत्र
विश्रह राज चतुथ के हाथों सल्नन की स्व्यु हुई । चौद्दानों ने उसके सच हाथी
हस्तगत किये और मेवाड़ के कुछ भाग पर अधिकार कर लिया । उसके पुत्र अर-
गाड्डय को हटा कर प्रथ्वीराज दतीय जन्र गद्दी पर वैठा तो उसने गुहिल बंश से
सम्भबत: मैत्री की । प्रथ्वीराल ;;तीय के उतराधिकारी सोमेश्वर और युहिलराज
सामन्तसिंह को सोलंकी अजयपाल से युद्ध करना पड़ा, जिससे भी गुदिलों और
चौहारनों की तत्कालीन मैत्री सिद्ध होती है। कुछ समय के वाद मेवाइ में घरेलू
भगड़ों के कारण सोलं कियों को चित्तौड़ पर अपना अधिकार जमाने का अवसर सिला |
ओभाजी ने यशोवर्मा के राज्य तक परमारों को चित्तौड़ का स्वामी माना है;
सो भी प्रायः निश्चित है। जिनपाल रचित खरतरगच्छ पट्टाबली से सिद्ध है कि
परमार राजा नरवर्मा के समय चित्तौड़ उसके अधिकार में था । यशोवर्मा, सरवर्मा
का उत्तराधिकारी था |
चित्तौड़ पुनः कव स्वतन्त्र हुआ, यह एक विचारणीय प्रश्न है। ओभाजी ने
सामन्तसिंह तक ही अपने विमश की समाप्ति कर इसका पूरा उतर नहीं दिया है किन्तु
“हस्मीर मद स्दन', 'सुकत संकीर्तने ओर कीर्तिकौमुदी के आधार पर यह अनुमान
क्रिया जा सकता है कि सोलंकी भीमदेव डितीय के राज्य काल में ही मेवाइ फिर
स्वतंत्र हो गया । इल्लुत्मिश ( सन् १९११-१२३६ ) ने जब सेबाड़ पर आक्रमण
किया, उस समय चह्द स्वतन्त्र राज्य के रूप मे था
डितीय प्रकरण का पांचवां लेख चौलुक्य राजा भीमदेव टितीय के सामन्त
महारान्ञाधिराज अस्रतपालदेव के सं० १९४२ के दानपत्र के विषय में है । यह
मेवाड़ और डू गरपुर राज्यों के इतिहासों के लिये विशेष उपयोगी है । इससे सिद्ध
है कि मेवाड़ का राज्य खो देने पर कुछ समय के वाद सामन्तसिंह को अपना सया
राज्य डूगरपर भी छोड़ना पड़ा और भीमदेव चोलुक्य ने कुछ समय के लिये वहां
अपना अधिकार कर लिया । अस्तपालदेव इसी का सामन्त था । गुहिल
सामन्तसिंह को हम प्रश्वीराज ठतीय का मित्र माने तो इस दान पत्र से सिद्ध है कि
यह मैत्री भीमदेव ;तीय के विरुद्ध कुछ विशेष कार्य कर सिद्ध न हुई । संवत १२४४
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