गुसाई - गुरुबानी | Gusai - Gurubani
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
103 MB
कुल पष्ठ :
816
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
गोकुलचंद नारंग - Gokulchand Narang
No Information available about गोकुलचंद नारंग - Gokulchand Narang
विजयेन्द्र स्नातक - Vijayendra Snatak
No Information available about विजयेन्द्र स्नातक - Vijayendra Snatak
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)) गुसाई-गुरुबानी
ऑ्रादि. नरंजनि जानियो निर्भो तुम निरंकारि |
अ्रणिम श्रगोचरि सुनिभे रचना राचन हारि ॥
र्
आदि निरंजनि हय निरंकारा । रहिता सुंनसमाध निश्चारा ॥
वपि विस्थारि कीनो विस्थारा । उपिजे तीनि देव झ्धिकारा ॥!
अलिष पुष॑ श्रकास बनायों । पोनि थंह्ि मिल पौन उठाओओ ॥।
पौन मध्य जब तेज नवासा । ताते जलि धरि कीनी भ्रासा ॥।
जलि के ऊपरि धरिन बनाई । झ्रासा मनिसा तहां समाई ॥।
ध्मंघुजा ते. घौल बविचारा । धर्ती राष रापन हारा ॥
तांका बंधन वासव कीना । पौनि थहा दस चारि प्रवीना ॥।
जोति प्रकास चंदि रवि तारे । रचना राची. राचनहारे ॥
जो जो जीवि जनिम जुगि करिश्रा। सोई सोई नाम ताह फुनि धरि्रा।!
माया मोह पटल जवि कीथ्रा । तापरि उरिक रहो एड जीद्रा ॥
अ्रलिष पुर्ष की धारना क्या कोई सके विष्यानि।
साईंदास श्रछरि साधू हुकम प्रभ सो मति हि्दे मान ॥।
रंगि रंगि बहू रंगे में सभ रंगि रहयों संमाई।
जेता बुभे प्रभ साईदास तेता दीश्रो बताई ॥
र््
कौनि वेला कौन बीचारि । रुति थित जुगि तहा कौंन वारि ॥।'
नछनत्रि लग्न जोगि वीचारि । जिह॒समे,, होइश्रा ग्रोंकारि ॥
१. श्राद नरंजनि जानियो--इस दोहे में बाबा साइंदास'जी ने एक झ्रगम श्रगोचर
पी तंरव से जिसे “ग्रादि निरंजन” कहा है, सुष्टि रचना.हुई मानी है । यह सृष्टि
*-् किस प्रकार बनी श्रागे की पंक्तियों में इसी का वर्णन है । यहां सृष्टि रचना
्ि सम्बन्धी सारा पौराणिक वर्णन सामने झ्रा जाता है।
२०. श्रलिष पुष॑ की धारना--यहां सृष्टि रचना का वर्णन समाप्त है।
रंगि रंगि बहुरंग सें--प्रभु की स्वव्यापकता वर्णन है।
«. कौनि वेला कौन वीचारि--यहां श्रोंकार स्वरूप भ्रव्यक्त परमात्मा के श्रजन्मा
होने का वर्णन है । यही बात गुरु नानक देव जी ने रौरास में कह्टी है । तुलना:
परिदिष्ट में देखिए ॥
डर सन
न
User Reviews
No Reviews | Add Yours...