महादेवी विचार और व्यक्तित्व | Mahadevi Vichar Aur Vyaktitv

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जी बा गई 1 उस समय वे बिह्कुल ऐसी लग रही थी जैसे हल्के धूमिल वातावरण मे से चादनी हँस रही हो । वात यह थी कि उनके भत्ते में एवं ये (उप्ट 9) रम का दाल पडा था । मैं उनको प्रणाम हो कर पाया था कि हँस कर कहने लगी; “मान तो हमारी मौडिंग है ।” उनकी हँसी में और इस वाक्य में ऐसा भाव था जेसे वे कह रही हो कि गाज चनके पास बातचीत के लिए अधिक समय नहीं है। फिर भी वार्ता- लाप का ख्रोव कही इन विवद्यताओ के पापाणो में दब सकता था ? मेने कहा, “कौन- सी मीटिंग और कब है ?” कहने लगी, “साहित्यकार ससंद की अन्तरग कार्यवारिणी ची मीटिंग है आज दो बजे । पर मभी में गुप्त जी के साथ “रसूलावाद' ससद्‌ के लिये जमीन देखने जा रही हूँ ।” पहले जव मैं उनसे मिला था तो मैं गुजराती-लेखक स्नेह रशिम' की पुस्तक “स्वर्ग और प्रथ्वी' के अनुवाद कौ पाडुलिपि महादेवी जी को दे थाया था । मैं चाहता था किं साहित्यकार ससद्‌ से यह निकले । राजनारायण महरोधा तो 15 प्रतिशत रॉयल्टी देना चाहते हैं । साहित्यकार ससद लेखकों की सस्था है, उनका मला चाहती है, 20 प्रतिशत कम से कम देगी । महादेवी जी ने भी मुझसे कहा था कि हम 20 प्रतिशत से कम मौर 30 प्रतिशत से अधिक नहीं देंगे । मैंने पूछा, “आपने मैन्यूस्क्रिप्ट (8००४८) पढी ?*” बोली, “हाँ, मैंने पढ ली, मैं उसे आज अन्तरग में रक्खूंगी मर बन्तिम निर्णय एक दो दिन वाद दे सकू'गी ।” मैंने आपके पत्र के लिये कहा । कहने लगी, “बढ़ा भाइचयें है ! मैं तो मानव जी को दो पत्र लिख 'ुकी । एक तीसरा रजिस्ट्रार का अलग था ।” मैंने कहा, रजिस्ट्रार का पत्र तो उन्हें मिल गया, पर आपका कोई पत्र उन्हें नहीं मिला 1” मैंने प्रा, *नइण्लिश अनुवाद के वारे में आपने क्या लिखा 7” बोलीं, “मुझे कुछ अद उसका बहुत पसन्द आया | मैंते सन्हे उसके बारे में भी लिखा था बौर लिखा था कि वे साहित्यकार ससदू मे मी कुछ करें 1” वे आपकी सेवायें साहित्यकार ससद में थवाहती हैं । पर कह रही थी कि वे इसके निमम-बन्धन को मान सकेंगे या नहीं, जानती नही । मैं उन्हे इसका विधान भेज रही हू । मैंने पूछा, “नोआखली के बारे मे अब आप क्या सीच रही हैं ”” दोली, मैं चाहती हैँ कोई व्यक्ति वहाँ जाये । उसे हम थाने नाने तथा. वहाँ रहने की सब सुविधायें तथा खर्चे देगे । हम चाहते हैं कि वह वहाँ की दशा का निरीक्षण कर हमें कुछ मौलिक साहित्य दे ?” मैंने पूछा, “वहाँ की ऐवडविटड (&0तएल९7) गल्से के बारे मे जाप का क्या विचार है ?” बोलो, “वे तो विल्कुल पवित्र हैं! मला सोचो तो यदि एक बुरा थादमों एक स्त्री को भ्रष्ट करता है तो यह उस स्थी की लज्जा नहीं, यह तो मनुष्यता की लज्जा है” महात्मा गाघी को मूति देखकर सुझे पुरानी बात याद था. गयो । मैंने पूछा, “'ाप॑ कहती हैं कि जो भी मैंने लिसा है वह अपने अस्तर कौ वात लिखी है । मेरे 2-7.




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