जीवन के अंचल से | Jivan Ke Anchal Se

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Jivan Ke Anchal Se by लीलावती मुंशी - Lilavati Munshiशिवचंद्र नागर - Shivchandra Nagar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जीचन-संघ्या रहे. विचारों के मैंबर-जाल से इनका मस्तिष्क चकरा रहा था । चलते-चलते इनका अंग-प्रत्यंग दुखने लगा था । स्वर्ण के सिंहासन को सुशोमित करने वाले मुरारि ने जमीन पर पैर फैला टिये श्रौर हाथ का उपधान बनाकर बोती का छोर श्ोड्कर आंखें बंद करलीं । परन्तु समस्त विश्व को दिला देनेवाला इस दशा में स्वस्थता से केसे सो सकता ? ्रांखें मीचीं श्रौर इनको शंका होने लगी---उन्होंने प्रथ्वी का भार उतारने के लिए जन्म लिया था पंर क्या उन के समस्त जीवन मैं प्रथ्वी को यड़ी-से-बड़ी पीड़ा नहीं हुई थी ? ं गोकुल से ही इसका श्रारंभ हुआ था | .कृष्ण की शक्ति पर झाशित _ रहने वाले ग्यालों ने झास-पास के गांवों में श्रपने तूफानों से कितना न्रौस मचाया ? एक द्रौपदी के कारण पांडव-जैसे मूखों को राज्य दिलाने के लिए इन्होंने महदाभारत के युद्ध में करोड़ों का संहांर कराया श्र उसंसें मी अपने मित्रों तथा शुरुआओं को मारते समय पीछे मुड़कर नहीं देखा. । शऔर श्रंतित यादवस्थल्ली ? इनकी शक्ति के बल पर शक्तिशाली बने हुए यादव इतने बढ़कर चले कि इन्हें न्याय-द्न्याय तक का-सयं न रहा ने इन्हें नीति-दनीति . की चिन्ता रही रात-दिन मदिरा में सस्त रहते । ये गर्वीले यादव ? श्र उनमें बलराम धर सांध पद्म शौर प्रिय द्ेनिरुद्ध सबकी याद कर कृष्ण- जैसे जगत्‌-पुरुष की झांखें भी गीली. हुए. बिना न रहीं । हू ६ परमेश्वर जिस तेज के अंश से तूने मेरी निर्माण किया है चहीं मुझे वापस बुला हे । तूने सुभमें जो विश्वास रखा था वह निष्फल हो गया | - अपने जीवन मैं मुभे श्रसफलताओओं की शड्डला के अतिरिक्त श्रौर कुछ नहीं. दिस्ाई देता । जीवन मर मैंने नाश नाश श्रौर नाश के अतिरिक्त कुछ नहीं . किया मेरे चाहने वाली ने भी कभी मुंकें विश्वास नहीं किया | पर _ श्रांज तो वह सब वेमव शोर भव्यता जाती रही । जीवन की - औड़ाएं... भी. समाप्तें हो गई । झेब तो अशक्त श्र एंकाकी जजरिति तथा सिर्षल देर द शिशु तुमे पुकार रही. हैं । दीनानाथ | सब यह जीवनलीला संमेट लो 1 बया. वार्स्तव में विश्वन्पालिक में झणा की. प्रार्थना सुनी . वादर छोटी.




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