वचनिका | Vachanika

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काशीराम शर्मा - Kashiram Sharma

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रघुवीर सिंह - Raghuveer Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका (१) डिंगल राहिस्य श्र भाषा इ+ * 1 राजस्वान की साहित्यिक भापाएँं घ्राधुनिक भारतीय श्रायं-भाषाओं दा उद्गम श्राज से लगभग एक सहस्र वर्ष पुर्व हुप्ा होगा यह प्राय सर्व-मात्य सिद्धान्त है। जिस भृू-खण्ड में श्राज ब्रज श्रादि परिचमी हिंग्दी की बोलियाँ, मारवाड़ी, मेवाडी ब्रादि राजरथानी वोलियाँ श्रौर गुजराती की श्रनेक वोलियाँ बोली जाती है वह किसी समय शोरसैनी प्राकृत का क्षेत्र था । सास्कृतिक श्रौर राजनीतिक सम्पर्क के ह्लास गौर स्थान-गत दूरी के कारण इस भू-खण्ड की भाषा-गते विज्षेषताश्रो मे समय पा कर कुछ परिवर्तन बौर श्रन्तर हुए । प्राकृतो से श्रपश्र श बनते-बनते शोर्रसनी प्राकृत के भुनखण्ड में स्पपतत दो श्रपश्र शो हष्टिगोचर हुई जिन को सुविधा के लिए दोरसेनी श्रपश्र श श्रौर गौजेर श्रपश्र ण कहा जा सकता है । राजस्थान दोनों ही प्रकार की श्रपश्र शो का क्षेत्र रहा । प्चिमी राजस्थान में गौर्जर श्रपश्न या का प्रयोग था तो पूर्वी राजस्थान मे शोरसैनी श्रपभ्र श का । सोलहवी भत्तान्दी तक श्राते-्राते गौजंर श्रपश्रदा की भी दो शासाएँ हो चली थी 1 एक से वर्तमान गुजराती स्प्ट रुप में उदित हो चुकी थी भ्रौर दूसरी मे परिचमी राजस्थानी । इसी प्रकार ब्रज श्रादि पश्चिमी हिन्दी की वोलियो तथा पूर्वी राजस्थानी की बोलियों में भी पर्याप्त भेद ६ृष्टिगंगोचर होने लगे ये । इसी प्रकार राजस्थान की साहित्यिक परम्परा में भी भाषा के दो स्पष्ट रूप देखने को मिल सकते है--एक पदिचिमी राजस्थानी का जिसे तेरिसितीरी आदि ने डिंगल कहना उचित समझा था शरीर दूसरा पूर्वी राजस्थानी का जिसे पिंगल कहा जाता हे । श्रव तक विद्वानों की मान्यता यह रही है कि पिंगल का साहित्य वस्तुत ब्रज-भाषा का साहित्य है ग्रौर उस में डिंगल के भी श्रनेक शब्दों का सम्मिश्रण है । परन्तु वस्तु-स्थित्ति यह प्रतीत होती है कि जिस की पिंगल कहा जाता हे. वह पूर्वी राजस्थान की साहित्यिक भाषा थी श्रौर जिस को डिंगल कहा जाता है वह पश्चिमी राजस्थान की । दोनों प्रकार के साहित्य के निर्माता प्रधानत चारण, भाट इत्यादि राज-कवि हुआ करते थे झौर उन के पठन-पाठन की एक निश्चित शैली हुभ्ा करती थी । अतएव ण्दावली का समान होना स्वाभाविक है । दूसरी श्रोर पूर्वी राजस्थान की चोलियो का न्रजभापा से सामीप्य होने के कारण उस से भी साम्य नैसर्गिक है । इसी लिए प्राय श्रम-वण पिंगल को ब्रजभाषा सान लिया जाता है । वैसे ब्रजभाषा भ्रपनि युद्ध साहित्यिक रूप में भी राजस्थान मे उतना ही सम्मान्य स्थान प्राप्त करती रही है जितना डिंगल श्रौर पिगल । राजस्थान का सस्कृतेतर साहित्य इस प्रकार तीन भागों में विभक्त किया जा सकता है--डिंगल साहित्य, पिंगल साहित्य गौर ब्रजभाषा साहित्य । डिंगल श्रौर पिंगल वस्तुत बहुत पुराने शब्द नही है। इन का प्रयोग सर्व-प्रथम




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