बुद्धकालीन समाज और धर्म | Budhakalin Samaj Aur Dharm

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Book Image : बुद्धकालीन समाज और धर्म  - Budhakalin Samaj Aur Dharm

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ बुद्कालीन समाज और धमें जिनकी बद्ध-कालीन इतिहास के लिए उपयोगिता असदिग्ध है। यह सत्य है कि कई कहानियाँ बद्ध-पूव॑ काल की हैं, किन्तु उनकी भी उपयोगिता में कमी नहीं आती है । पू्व-प्रचलित कहानियों पर भी जब बोद्ध-मत का आवरण चढाया गया तब उन्हें तत्कालीन सामाजिक भान्यताओ के उपयुक्त बनाया गया, जिससे वे बाते जो पुरानी पड़ गयी थी निकाल दी गयी । जातकों के सम्बन्ध मे जो भी विवाद हो परन्तु इस बात को स्वीकार करने मे आपत्ति नहीं होनी चाहिए कि उनमे बद्ध के जन्म के समय से लेकर प्रथम शताब्दी ईसवी पृव॑ अथवा ईसवी सन्‌ तक के समाज का विवरण उपलब्ध होता है । बौद्ध पिटको मे मुख्यतया मध्यदेश अथवा मज्सिम देश के जन-जीवन का वर्णन मिलता है । मज्झिम देश का विस्तार पद्चिम मे थाणेइवर तक, पुवं में क्जंगल (ककजोल, सथाल परगना) तक, दक्षिण मे सलिलवती नदी एवं सु सु- मार गिरि तक तथा दक्षिण-पद्चिम मे अवन्ती तक था । बुद्ध के जीवन-काल मे इसी क्षेत्र के अतगंत बौद्ध-मत का प्रचार हुआ । यद्यपि पालि-त्रिपिटक को उस समय अतिम रूप प्रदान किया गया जब सुदूर दक्षिण को छोड़कर सम्पूर्ण भारत एक शासन के अ तगंत भा गया था, पर पिटको मे यह कही नहीं कहा गया है कि मज्सिम देदा की सीमा के बाहर बौद्ध-मत का प्रसार हुआ । इसका कारण यह है कि बुद्ध के उपदेशो को मज्झिम देश के भिक्षओ ने सुर- क्षित रखा था और उसमे वे कोई परिवतंन नहीं करना चाहते थे । बौद्ध-मत का विशेष प्रसार अशोक के समय मे हुआ और दूसरी शताब्दी ई० पूरे मे दक्षिण- पश्चिम भारत मे इसका व्यापक प्रसार हुआ । परन्तु पिटकों में इन क्षेत्रो को महत्त्व नही प्राप्त होना इस बात की पुष्टि करता है कि मौये-काल के पुर्वे बोद्ध- मत उत्तर भारत मे ही सीमित रहा । जातक कथाओ मे प्रतिष्ठान, सुप्पारक (सोपारा), भरुकच्छ (भडौच) आदि व्यापारिक नगरो के उल्लेख हैं । ये वे व्यापार-केन्द्र थे, जहाँ उत्तर भारत के सा्थवाह जाते थे, अत. इन स्थानों से उत्तर भारत के लोग परिचित हो गये थे और इन स्थानों की यात्रा-सम्बन्धी अनेक कथाएं गढ़ ली गयी थी । जो जातक अथवा जो थोडें अश पिटको मे पीछे जोड़े गये होगे उनमे दक्षिण-पदिचिम भारत के कुछ रीति-रिवाजो के उल्लेख आ गये होगे । परन्तु कही भी यह नहीं कहा गया कि बुद्ध ने पदिचम-भारत में जाकर अजन्ता, भाजा या किसी अन्य चेत्य मे प्रवचन दिया । इससे यह प्रमा- णित होता है कि बुद्ध के जीवन की घटनाओ मे तोड-मरोड नहीं की गयी है । बौद्ध पालि-पिटक से तत्कालीन समाज का जो विवरण उपलब्ध होता है




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