भावुक | Bhavuk

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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र५नर होकर पंकिल कुटिल जटिल फेनिल बहती हे हाय प्रति क्षण शाप अधघोगति ही लहती है पर चिन्ता कुछ ॒नदीं, अह्दों लहराती रहती किसकी आशा किये प्रणय से गाती रहती रखती है शीतल हृदय सबका हरती ताप हे हाँ, सेकत-मयवन्घु-की ठूषा घुमाती श्ाप है । जिसे न कुछ भी ध्यान कि तुमसे कोन तरलता उसे मान कर सरस जनों की सहज सरलता तुकको निज निःसीम हृदय सें जो रख लेगा भर देगा लावण्य, मोतियों से सज देगा उस रल्लाकर से अहों जो. तुमको छापनायगा प्रम-पाश मे लॉँघ के मयांदा में लायगा |




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