मानव की कहानी | Manav Ki Kahani

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Manav Ki Kahani by डॉ. रामेश्वर गुप्ता - Dr. Rameshvar Gupta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रागऐतिहासिक मानव [पप्ठ४ शप-ाडा0पाए हाडत ] मानव का झाविभवि सृष्टि का भ्रादि रूप सम्भवत' एक वर्शुनतोत, परिव्याप्त ज्वलस्त वायुभण्डल के समान था 1 मानों वह महापुश्जिसूत ज्योति थी । इस ज्योति में हे प्रनेक नक्षतयण उदसूत डे 1 एक नक्षत्र थे, जो हमारा सूयें है, हमारी पढ़ पृथ्वी ठत्तन्न हुई । यह प्रथ्वी सूर्य का हो एक खण्ड थी, श्रतएव यह घपकती हुई भ्राग का एके विशाल गोला यी । करोड़ो वर्षों तक यह प्रृथ्वी निष्प्राण शून्य सी पड़ी रही । श्रनेक प्रकार की घटनायें, झनेक प्रकार के एरिवर्तेंत इसे पर हुए । शगे. शगे: यह आग का गोला ठंडा हुमा, इस पर समुद्र बने, भीले प्रौर नदिया वनी, पहाड़ एव ऊबेर मूमि वन । छस्तु श्रव तक पृथ्वी पर इन 'घटनाग्री का कोई द्रष्टा नहीं था । फिर प्राज॑ से करोड़ो. वर्ण पहले--सम्मवतः, ६०-४० करोड़ वर्ण पहिले किसी युग में किसी दिन इन प्राण घटनाग्रो की पृष्ठमूमि पर जडमूत द्र्य में से प्राणा का श्राविरमवि हुआ । ये प्राण सदप्रथम अतिसूदम जीव कोपों में एन श्रति साधारण जौवों में प्रकट हुए । विकासवाद के सिद्धान्त के ध्रतुतार उपरोक्त सरलतम जीद कौपषो मे से, अस्थिहीन, रीढट्टीन जीवों में से पहिले रोढयुरता एड अस्थियुक्त मद्स्यो का विकास हुमा, फिर मेदव', टोडपोल, सामु- द्विए बिच्द्ध जर, ग्र्ध-जलचर प्राणियों का, फिर साप, श्रणगर, मगर जैसे सरीसूप प्राणियों का श्रौर फिर इन्ही रो एक तरफ तो हवा में उड़ने वाले पक्षियों वा और दूसरी तरफ गाय-मैंस, घोड़ा, कुत्ता, गेर, लगर वानर, भादि स्तवधारी प्राणियों का । स्तनघारी प्राधियों को पिद्दी एक जाति में से ही मान्य विरसित हुआ ! सानद के निश्टतन पूर्दज आजकल बैज्ञानिक विशेषज्ञो मे यह मत प्राय. मान्य है कि मनुष्य था निकटतम प्रर्यज जमीन पर घलने वाला दिना पूछ वाला बन्दरसम कोई




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