स्म्यग्दर्शन | Saygdarshan Ac.1731
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
280
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मानवजीवन का सहाकतंघव्य
सम्यग्दरान
कु दंसण मुलो घम्मी क
१ सम्यपकूवकों नमस्कार
हे. सर्वोत्क्ट सुखके ददेतुभूत सम्यग्दशन ! तुमे अत्यन्त भक्तिपूवक
नमस्कार हो । ः
इस झनादि संसार में अनन्तानन्त जीव तेरे आश्रय के बिना
ब्रनन्तानन्त दुःखोंको भोग रहे हैं ।
तेरी परमकृपासे स्व -स्वरूपमें रुचि हुई, परम वीतराग स्वभावके
प्रति हृढ निश्चय उत्पन्न हुआ, क़तकृत्य होनेका माग प्रदण हुआ ।
हे बीतराग जिनेन्द्र ! आपको श्रत्यन्त भक्तिपूवक नमस्कार करता
हूं झापने इस पामरके प्रति अनन्तानन्त उपकार किये हैं ।
है. कुन्दकुन्दादि आचार्यो ! आपके वचन भी स्वरूपानुसंधान के
लिये इस पामरकों परम उपकारभूत हुये हैं। इसलिये आपको परम
भक्तिपूवक नमस्कार करता हूँ ।
सम्यग्द्शनकी प्राप्तिके विना जन्मादि दुःखोंकी श्रात्यंतिक निवृत्ति
नहिं दो सकती । ( श्रीमदू राजचन्द्र )
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