हिंदी प्रवेशिका गद्यावली | Hindi Praveshika Gadhvali

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Hindi Praveshika Gadhvali by श्यामसुन्दरदास - Shyaam Sundardas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पदमावती को कथा श्श्‌ में झनेक कष्टों को केलकर वह समुद्र-तट पर पहुँचा और 'गज़पति' की सहायता से उसने बोदहित लेकर समुद्र पार करने का निश्चय किया। ज्ञार, खीर, दधि; उद्धि, सुरां, किल-किला और मानर्सरोवर आदि सात समुद्रों को पार करता हुआ वह सिंघल द्वीप में पहुँचा । वहाँ पर महादेव का एक मंदिर था, ऊँ रतनसेन अपने साथियों के साथ बैठकर तप करने लगा | शुक को उसने पद्मावती के पास भेज दिया । शुक ने जाते समय राजा से कहा कि व्संतपंचमी को पद्मावती यहाँ पूजा करने झवेगी तब आपसे मेंट होगी । शुक को बहुत दिनों के बाद देखकर पद्मावती बड़ी प्रसन्न हुई । हीरामन ने अपना सारा हाल कह सुनाया और रतनसेन से पहुँचने का समाचार भी दिया । पद्मावती उस पर सुग्ध हो गईं । उसने घतिक्ञा की कि राजा के गले में जयमाल डालूँगी । इसके पश्चात्‌ शुक राजा के पास लौट आया । पद्मावती दसंतपंचसी के दिन उस मद्दादेव के मंडप में पहुँची और उससे राजा का साक्षात्‌ हुआ, पर राजा उसे देखते ही मूर्च्छित हो शया । उसके सूच्छित होने पर पद्मावती ने उसके वक्त: स्थल पर चंदन से लिख दिया--“जोगी, तू अभी भिक्ता प्राप्त करने योग्य नहीं है; तू ठीक समय पर सो जाता है ।” यह लिखकर वच्च चली गई । ः पदमावती के चले जाने पर राज्ञा को चेत हुआ । बह बहुत पछुताने लगा । उसने प्राण देने का निश्चय किया । यह समा- चार सुनकर सब देवता घबरा उठे । महादेव और पावेती ने वेश बदलकर उसकी परीक्षा करने का निश्चय किया। पावेती ने अप्सरा का रूप धारण किया और राजा से कटने




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