पंद्रहवीं शताब्दी तक के वैष्णव आचार्यों की भक्ति विषयक संधारणा | Pandrawahi Satabdi Tak Ke Vaishnav Aacharyon Ki Bhakti Vishayak Sandharna

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Pandrawahi Satabdi Tak Ke Vaesannw Acharya by शैलजा पाण्डेय - Sailja Pandey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जाता है । जबकि पॉफराचार्य ने कहा है कि अविधा की निवृत्त्त पे हमारे बन्धन और दु:ख टूर हो जाते हैं और यही मोध् की स्थिति है । अपनी आत्मा को जानना या आत्त्म साक्षात्कार ही मौधष है । जैसियों शव बौद्धों ने मोक्ष तथा निवाँण को क्रमश: सभी कमोँ का क्षय और सभी टु्खों का उपशय कहा है | इस प्रकार मोक्ष विषयक विवेचन मे यह स्पष्ट होता है कि किसी न किसी प्रकार से स्थल जगत रवं विषपों तथा कर्मों मे चित्त को हटाकर मन को एका्र करके प्रभ्न स्मरणु विधा का अभ्यास अधवता कर्माप्तक्ति का त्याग करके पुख की प्राप्ति या मोक्ष अथवा शान्ति प्राप्त कर सकता है | हमारे भारतीय धर्म में इस मोक्ष को प्राप्त करने के लिए कई मार्ग बतारे गे हैं । जैसा कि पूर्व पृष्ठ -पर ज्ञानमार्गी,, कर्ममार्गी शव भक्तिमार्गी' साधकों का उल्लेख है उसी के अनुसार साधना के थे तीन मार्ग बताये गे हैं |... 1... ज्ञान 2 कर्म डर भक्ति श्ले ही इन तीनों को अलग..अलग प्रकार सै समझाया गया है लेकिन वस्तुत: थे तीनों अन्योन्याध्रित हैं | ऐसा नहीं कि ज्ञान मैँ कर्म मिश्रित न हो या. भक्ति मैं ज्ञान समान्वित न ही | लेकिन सर्वप्रथम ती हमें न तीनों को अलग-अलंग ही. समझ्ञाना है कि ये तीनों मार्ग वस्तुत: हैं क्या 9 कर्ममा गैँ- की कसतस, सनक, असामरा दल सतत, कर्म मार्ग या कर्म योग की शिक्षाः जितनी अच्छी प्रकार मे गीता मैं वर्णित है उतनी अन्यत्र उपलब्ध नहीं होती है । ऐेप्ा नहीं है कि वेदोपनिषट काल मैं कर्म का. महत्व नहीं था. 1 बल्कि वैद तो पूरी तरह से कर्ममाण्ड परे ही आधारित है जैपें हवन] यज्ञ इत्यादि का उसमें विधिवत विधान किया




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