परमात्मप्रकाश प्राकृत दोहा | Parmatmaprakash Prakrit Doha

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Parmatmaprakash Prakrit Doha by बाबू सूरजभानुजी वकील - Babu Surajbhanu jee Vakilयोगेन्द्र - Yogendra

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बाबू सूरजभानुजी वकील - Babu Surajbhanu jee Vakil

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रह 4. कि की के ही के का कक 48.5 2 852 न. का कक. कक कक का कक जय _औ ही के की के कद 4 की के हि. | अर... ० ले व कक का न अहम अर अका ा ा दि 4 रह कह 9 कड़े दी (रे) अप्पा भावादि निम्मलड, जे पार्वाह् सवतीर ॥ ७ ॥। हे जीव तू देह में जुढ़ापा और शरसा देखकर लय सतकर अजर अमर जो परनक्ा है उसही को लू अपनी आत्साजान-चाहे घारीर का छेद्द्दी भद्दों वा ध्यष्टी अथोत्‌ चारीर चाहे कटे टटै या नाद्या शोजावे तू उसकी तरफ छछ ध्यान लत दे तू तो अपनी छुद्धजा त्मा का अलुभवकर जिससे तू संसार उन्ुद सेपार दोजावे ॥ कम्मदद केरठ भावडड, अणुशा अचेयरथ दुव्व। जीव संहार्वाह भिरणुलिय, रिए यम बुज्कहि सब्व॥ ७३ ॥ यह थात खब जानते है ॥ पापा झ्प्पा मिलियिं णाणसऊ,अर्ण परायर भाउं ।- वे छडेविश -जीव तुददु; भार्वादि * अप्प सद्दाउ ॥ ७४ ॥ ज्ञानमई जो आत्मा दे उखखे जो सिनन नाव है उन सबको छोड़ कर तू अपनी झुद्ध आत्माका अजुसवय कर ॥। झहिं कम्माहि दाहिरउ, सयलहिं दोसहंचनु । देसण खांग्ग चरित्तमउ, अप्पा भाषि शिंख्ति ॥ ७९ ॥ आए करे उौर 1८ दोपों से रदित यह जीव दूद्न, ज्ञान, 'यारिन् रूप तू ऐसा अनुभव कर ॥ छप्पटट छप्पु मुरणउ जिउ, सस्मा दिड्टि दवेइ । सस्मादिहिउ -जाचडउ, लड्डू करमइ मुद्नेइ ॥ ७६ ॥ जो जीव आत्मा को आत्था सानता है चदद ससम्पक्दछि है स- स्परूदाछि ही कम्मों के चन्घन से छूटता है ॥ पज्जय रत जॉंवडड, मसित्थादिहि इदेइ । '. बंघइ बहुविदद कम्मडा, जिस. ससाझ भमेइ ॥ ७७ ॥ जो जीचपयोयथ से राणी द्ोकर प्रवत्ता है बच. सिथ याद छि है चद ह नाचाध्रकार के कर्मों व्या बंध करके संसार में सता रि्दरता है॥। कम्मइ दिढ घण चिकणइ, गुरुयं सेरे समाइ । रपारण वियवखरणु जीवडउ, उर्पपई पार्डाइिताइ ॥ ७८ ॥ 4 च्हसे चुत जारावर जइर गंचकन रू स्का समान बड़ छू कस




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