द्रव्य संग्रह | Dravya sangrah

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Dravya sangrah by बाबू सूरजभानुजी वकील - Babu Surajbhanu jee Vakil

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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द्वव्य-संयह । १२३ तान लछोकम फंड जानका ह । परन्तु युक्त हदोनेपर अपन आक्ता- रका वदानि अथोत्‌ फेलाने वा कोड विशेप आकार वनानेका कोटर कारण भी तो नही रहता है।इस हेतु मुक्त होते समय शरीर छोड़ने पर जा आकार जरीरका था उसके ही समान जीवका आकार वना रहता दै । संसारी जीवका आकार सदा देहके अनुसार होता ই। অখান जैसी देह मिलती है उसमे दौ जीव व्यापक रहता है, न त्तो देहसे बाहर होता है और न देका कोड अग जीवसे खारा रहता हं । परन्तु समदघातके समय जीव देहके अन्द्र भी रहता हैँ और देहस बाहर भी फेल जाता हैं। समुद्घात सात प्रकारका होता है-( १) बेदना (२) कपाय (३) विक्रिया (४) मार- णान्तिक्र (५ ) तेजस (६ ) आहारक ओर (७ ) केवली । समुद्धात । १-तीत्र वेदुना अर्थात अधिक दु खकी अवस्थामें मूल शरीरको न त्याग कर जीवके प्रदेशोका शरीरसे वाहर फैलना बेदना-समुदघात है । २-क्रो बादिक तीत्र क्पायके उदयसे धारण किये हुए शरीरको न छोडकर जीवके प्रदेशोंका शरीरसे बाहर फेलना कषाय-समुदघात है । ३-जिस दरीरकों जीवने धारण कर रखा है उसको न त्याग करके जीवके कुछ प्रदेशोंका कसी प्रकारकी विक्रिया करनेके अर्थं शरीरस - बाहर फैल जाना बिक्रिया-समुद्घात है । ४-मरण समय जीव तुरत ही शरीरको नही त्यामता है, वरन शरीरम रहने हुए ही शरीरसे बाहर उस स्थान तक फेलता है जहा इसको जन्म ठेना ह-इसको मारणान्तिक-समुदघात कहते हैं । ५-तैजस-समुदघात दो प्रकारका हे-एक शुभ और दूसरा अज्ञुभ । जगतकों रोग वा इुर्भिक्ष आदिसि पीडित देखकर महामुनिको कृपा उत्पन्न होनेसे जगतदी पीडाका कारण दूर करनेके अर्थ उनका आत्मा घरीरमें रहते हुए मी उनके दक्षिण कघेसे निकले हुए पुरुषाकार




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