आर्थिक कहानियाँ | Arthik Kahaniyan

Arthik Kahaniyan by ठाकुर देरुराज - Thakur Deruraj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हिना थुन्न छार डुख क उुपयो शा ठाकुर प्रभूसिद की सो सर रा थी । पंडितजी गरहई पुराण की कथा सुन रा थे । रवय जाने की ाकांचिगी घटा जि 2 हज #.. 2 लग अ् याय गदन उहुद्ानहनाकर पोइनजा को दाद दे रहा थे 1 दे नह पंडितजी कह रऐ थे पक कंजूस जच मरने लगा तो उसकी री नव कहा; आप ऊपर साय पुरय फरदें, झेशस से सना फर के 4. चै, गण से दिया किन्तु उसकी तकतीफ चराघर चढ़ रही थी । उपर गहसा का बताया तेरा घुरण य ए पास सचसुब का याद दान ने करत दंगा; तू सोन का घतरों घनवाकर ८ पर रयायर जप अपन एात से कह कफ सद्ठ साचर ना चाय ता दान यार कक &« ७ दन दो । चुम्द्ठार प्रर्य साख थे या तो सिपसा जाय यथा रोरा युक्त हो जाबोरे । एद्िर्ग्ग गोबर की साय दाग घर से निकल गये । जय उस जुपण का जीव नतरगी थे लिसारे पहुँचा तो उस वही ग ह पु पकड़कर गदी को पार करने तथा । सदी की नाहरों मे टकराकर गोचर शि ्भ री 2 3 प्यञ 2 प्पृ पद न. स्प अन्न स ट्ूब गया | इस प्या हिये ब्क खाट || पर भ्रीम्नीजी ध सूरन सपकों “न हा सर घना, था सर पुरा ससन जाना पा था डी नि ब्न्द्ान सन का सावन्सन तुनरा या; पानजान नया पा




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