चीन का भाग्य | Chin Ka Bhagya

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Chin Ka Bhagya  by कृष्ण किंकर सिंह - Krishn Kinkar singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चीनी राष्ट्र की वृद्धि दर विकास चीन की प्राकृतिक ( भोमिक 9) स्थिति पर श्रगर इष्टि डाली जाय तों चीन की पवत श्खलाश्रों श्रौर नदियों ने स्वयं एक पूर्ण व्यवस्थित एकता स्थापित की है। पश्चिम से पव की श्रोर एक सरसरी निगाह डालें तों एशिया की छत पामीर से प्रारम्भ होकर उत्तर सें थिएन्‌ शान ( देवशिरी ) आर झालतई पवत श्ंखलायें फैलती हुई पूव की श्रोर मंघचूरिया तक चली दे हैं। मध्यसाग में पामीर से प्रारम्भ होकर खुन-छुन पवत श्ंखला दच्चियु-पूव चीन के समतल मैदान तक फैली हुई है श्र दक्षिण में पामीर से दी चलकर हिमालय ( शि-मा-ला-या चीनी भाषा में दिसालय का नाम ) पवत सालाय मध्य-दक्षिख प्रायद्ीप ( चुड नान्‌ पान तावू ) में समाप्त दती हैं। इन पवत श्ंखजाओं के ही बीच दइ लुडू चिश्नाड ( चिश्रार-नदी ) ह्ाद दो. ( होन्ननदी ); हुई दो, छाड चिश्ाद ( याह टि सि किद्ाइ ) श्र चु चिश्याड ( पल नदी ) के कांठे श्र दृनें | इन कांटों श्रौर दूनों में दी चुद हा राष्ट्र की दृद्धि और विकास हुआ है। इनके भीतर का कोई भी भूभाग एक दूसरे से न तो काटकर श्रलग किया जा सकता है श्रोर न कोई स्वतंत्र इकाई के रूप में श्रपना श्स्तित्व दी रख सकता है । दिषीन के श्राधिक संगठन पर इष्टि डाल तो ऊपर वशित व्यवस्थित सीमा के भीतर के भिन्न भिन्न भागों में विशेष प्रकार की चीजें मिलती हैं और खास खास ढंग की घरती हैं। इसलिये भिन्न भिन्न भागों का रदन-सहन भी झलग शलगढ्दी है। जैसे, कहीं के पग शिकार प्र जिंदगी व्यतीत करते हैं तो कहीं के लोग चरागाह वाली श्रवस्था में हैं; कद्दीं के लोग उन्नति कर कृषि श्र उद्योग-धंघों में लगे हैं तो कहीं वे खान खोदने श्र धाठु बनाने के काय में पढ़ हैं शरीर कहीं यो वे मछुली पकड़ने या. नमक तैयार करने में लगे हैं। विभिन्न भागों में रहने वालों के कामों का बटवारा वहाँ के प्राकृतिक साघनों के श्राधार पर हुआ है श्रोर बहाँ का वाणिज्य-व्यापार जीवन की झावश्यकताशओं को पूरा करने की इष्टि से होता है । इसलिये रेल और जहाज श्राविध्कार तथा उनके श्राम व्यवदार के बहुत पढले ४, हन्छोपाइगा तथा उके आस पास के भूमाग का सम्मिलित नाम चीनी में “न्युम्नानू पाच्‌ तान” है? जिसका भथे दे मध्य दक्षिण प्रायद्दीप | 9




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