भारतीय शब्दकोश 1963 | Indian Year Book 1963

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( है ) # हनी चल जा के न अन्त ०० ५ रही है । एक रुसी प्राणिशास्प्रयेता डॉ० यूरो रॉस मे रखा है कि दमारे ताएक-पु जो के अन्तसंत करीब देढ़ लाख प्रह हैं, जिनमें वहुतों के अन्दर कई प्रकार के प्राणी विक्रास की, भिनन-सिनन स्थिति में हैं । कुछ ग्रद्दों में मनुष्य से सिलते-जुलते प्राणी भी रदते हैं । आकाशस्थ दिंडों के प्रायः अज्ग-अलग यमूह हैं। जले, हमारा परिवार है, वैसे ही अनधिनत दूसरे सौर परिवार हैं । इमारे सौर परिवार का केन्द्र सूय है । घूमते-घूमते सूये से दी समयनपमय पर कई खंड सिकलकर उसके चारों कोर चक्कर काटने लेंगे । थे. सब उसके *ग्रह' कहलाये ।. उन प्रो के भी जशग-अलग खंड हुए और थे अपने-अपने घरों के न्यतुर्दिष्टू घूमने लगे, जो “उपग्रह” कहलाये । इस सौर परिवार के अन्दर वहुत-से धूमकेतु भी हैं, जो अपनी निराली चाल से घूसते रहते हैं । उठ्का भी इसी परिवार के अंग हैं । हमारा सर्य अपने इस समत्त परिवार को लेकर अन्य सूर्ों की मॉति एक अज्ञात शक्ति 'ब्रह्म के चारों भोर घूम रहा है ॥ आकाशस्थ पिंडों में हम केवल अपने सौर परिवार के पिंडों की सति देख सकते हैं । शेप तारे अत्यन्त दूरी के कारण स्थिर-से दीख पढदे हैं । अतएुव, दम अपनी मणुना वी सुदिंधा के लिए और अपने सौर परिवार के पिंओें की गति-विधि सपरमाने के दिए शेष तारों को रिथिर मानकर ही चलते हैं । पृथ्वी अपनी गति के अनुसार अपनी घुरी पर पश्चिम से पूरव की ओर चक्कर काटती रददती है, इसलिए आकाश के सभी तारे सामूद्कि रुप से प्रतिकूल दिशा में, सर्थात, पूरब से पश्चिम की ओर जाते हुए सालूम पढ़ते हैं । भारतीय ज्योतिषी इसी को प्रवहमान वायु से तारों का चलना कहते हैँ । हमारे सूर्य का सबसे निकटवर्ती प्र घुध है.। उसके बाद क्रम से शुक्र, एथ्वी, मंगल चूद्स्पति, शनि, युरेनस, नेपच्यून भौर प्लूसे हैं + अन्तिम सीन ग्रहों को देखने के सिए दूरवीक्षण- येंच् की आवश्यकता पढ़ती है । इन ग्रहों में कई के उपग्रह भी हैं, जैसे कि प्रृथ्वी का उपग्रह चन्द्रमा है । अन्य उपग्रहों का पता दूरवीक्षण-यंत्र से लगा है । इन प्रह्मों और उपग्रहों का अपना प्रकाश नहीं है. । ये सूर्य के प्रकाश से प्रकाशित दोते हैं । सभी ग्रद अपनी धुरी पर घूमते हुए तथा अपनी कराओं पर 'यलकर सूख की परिक्रमा करते हैं । आकाश में खुली जाखें से दिखाई पढ़नेवाले सभी ग्रह के तारे चहुत चमकोले हैं जार उनकी गणना प्रथम श्रेणी के तारों में होती है । सभी अरद्दों की, सूये की परिक्रमा करने की कक्षा अंडाकार होने के कारण सूर्य से शिंसी प्रह की दूरी सदा एक-सी नहीं रहती, बहिंक वदसती रदती है । इसलिए यह दूरी श्रायः औसत रूप में वत है जाती है.। सूर्य से जो ग्रद्द जितनी दूर है, उसका तापमान उतना ही कम है । सू्य--सूये एक प्रकाशमान नौर अग्निमय गोलाकार पिंड है, जो मैंस से भरा हुआ है । एथ्वी से इसकी दूरी ६ करोड़ ३० लाख मील और इसका ब्यास ८ लाख ६५ हजार मील है । सथ्वी से इसका युस्व ३,३३,४३४ गुना और जाझार १० लाख गुना से अधिक है. ।' इसकी खत का तापमान १ करोद सेशिटग्रेंड है। शप्वो की भींति सूर्स थी अपनी चुरी पर घूमता है फिन्दु यदद भपनी विषुवत-रेखा पर २५. दिनों में जोर घ्रुवों पर ३३ दिनों में एक चक्र पूरा करता है । घूमने के समय में इस अन्तर का कारश सूर्य का गेंसमय होना वताया जाता है । इते हैं कि सूय॑ के आन्तरिक महाताप के कारण उसमें आँधी-सी उठती र दे हद दती है और उसी के लिलसिले में कभी-कभी कुछ काले घब्वे थी दिखाई पढते हैं । न




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