सूरदासजी का जीवन चरित | Suradasji Ka Jivan Charit

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Suradasji Ka Jivan Charit by मुंशी देवीप्रसाद - Munshi Deviprasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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यह सरल थो साहित्यलहरी के उसी ऊपर 'लखे पद की थी इसलिये फिर कर्विरावजी की सेवा में सूंर- सागर के पद दी नकल भेजने की प्राथेना की गई उन्होंने सादों खुद २ सम्बत्‌ ९४४९ के कपापन्न सें लिखा कि सूर- सागर मेरे पास नहीं है मैंने तो रोवां सें देखा था । सूरसागर बढ़ा ग्रन्थ है उससें दिना पते के सी पद का जिलंना दुस्तर है और सूरदासजी के दूसरे ग्रन्थ से उनके वंश का प्रमाण सिलही चुका हि वही बहुत है । हां जा उसमें कुदद न्यूनता है तो इतनी ही है दि प्रथस तो सूरदासजी ने शपने पिता का नास नहीं लिखा है। दूसरे घ्ष्टद्ाप में प्रविष्ट होने का प्रसंग भी नहीं जताया है सो इन दोनों बातों का पता सगाने के लिये आइन पकबरी * शौर चौरासीवातों श्े बहुत सहायता सि- लंती है । सोहनलालजी की सेजी हुई मेरे भी पास है परन्तु उसमें सूरसागरवाला पद नहीं है, दही साहित्यलहरो का है जो हम ऊपर लिख श्ाये हैं । * मुतलसानों के सम्पूणे समय का यही एक ग्रन्थ है जिसमें हिन्दुओं की प्रत्येक वस्तु प्रत्येक वात शार प्रत्येक सुचोग्य बादृशाही-झाश्रित हिन्दू का पता लगता है ।'




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