बुन्देलखण्ड के रासोकाव्य | Bundelkhand Ke Rasokavy

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अपनों ओर से / १४. दौरान चिटटी पत्नी पत्र पश्षिभाओ पुस्ततों और मौखिक चर्चाओों स इन विद्वाना ने मरी मर वी थी । अनय प्रथागार मसैंवढा के सस्वापक श्री जगटस्वा प्रसाद श्रीवास्तव, एवं उनके परिवारों जनों का भी मै अभारी हु विहोंत समस समय पर आावश्यन पाइडुनिपियाँ तखने या मुझे अवसर प्रात विया | डा० सीताक्शिर हिंदी विभाग शा० गावित महाविद्यालय सबढ़ां न जथ से तति सर शोध प्रव वे वा स्वरूप सबारन मे सहायता हो । बे मर हादा है। उन प्रति बतज्ञता चापन वप्टता होगी। डॉ० बामिन हिंती विभाग शा० गांविद महाविद्यालय सेवता का हठ समावित आग्रह मुझे काय करन का प्ररिति करता रहा तथा श्री शिवचरन पाठक पूथ विधायक सवा का जपार अनुवम्पाओ के तिए मैं ठूतजता तापित बरता हू । अपन मांग शक डा० हरिहर गोस्वामी ते प्रति विनयावनत हू जिन जसीस अनुप्रह न सुझे किसी प्रकार की नसुविधा हा जाभास भी नहीं होने दिया । मध्य कालीन इतिट्ासविर डा० भगवान रास गुप्त याँसी का स्नहाशीप मरा सम्बल बना। उदान ऐतिहासिक तथ्या कवहुमूत्य सुझाव देवर तथा भूमिका लिखकर इस कृति वा जधिक महत्वपूर्ण वया दिया । डॉ० श्वीमती सुया गुप्ता व प्रति विनत हू जिहोने सह मुझे ड्रियाशाल रहने थी प्रेरणा दो । गाँधा पुस्तकालय सवा के अध्यस एवं लाइब्ररियन सहांदय का भी मैं आभार स्पक्त करता हू लि होने समय समय पर मुन्ने वाच्छित सरभ प्र थ उप लग्ध वराय । इस अवसर पर मैं अपन स्वर्गीय पिता थी रामसवरग श्रावास्तव एवं स्वर्गीय माता श्रीमती सरयू री का पावन सूमरण अवश्य बस जा सरा साहित्यिक गति विधिया से सह प्रसघ्न रत थे । ये भया श्री ओमप्रकाश श्रीवास्तय न प्रति थडावनत हो जिहान कभा रोसकर उसी बीशकर मरा शिसा ही ता पूरी कराई और मुझे कुछ लिघन लायव बनाया । जाते मे एवं रेनह स्मरण जीवन सहेचरी श्रीमती क्शोरी क॑ लिए जा अपार घय वे. साथ घोध प्रयात लखन का अधि से घर गहस्था सम्हालती रती जीर मुझ अइवश्यय मादश्यकताओआ ये लिए भी नहीं रावय । मेक व प्रकाश था कुप्णन दर युकत जी, आराधना बेस हपपुर हा भी मैं आभार र्यक्त वरना चाहूंगा जिहान स्वय रख जरूर सुदण काथ में पीघ्रता वी। पैंबढ़ा विजया रेशमी सकटूवर १८्र ० श्यामविहारी श्रीवास्तव




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