ऋग्वेदीय ब्राह्मणों के आधार पर वैदिक संस्कृति का एक अध्ययन | Rigwediya Brahmnon Ke Adhar Par Vaidik Sanskrity Ka Ek Adhyayan

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Rigwediya Brahmnon Ke Adhar Par Vaidik Sanskrity Ka Ek Adhyayan  by सौभाग्यवती सिंह - Saubhagyawati Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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४ ,उपनिष इमाग -- यह साग मां कहीं ब्राघण आर आ एण्यक के साध है तो कहां स्वतन्त्र श्य से संकछित है । शममें ईश्वर,जीवा त्मा ,ससा र आदि विषयों पर चिन्तन स्व दर्शन समुपधिष्ट है । वेद के अन्तर्गत माने जाने वाल उपयुक्त चार मार्गों के अति रक्त वैदिक बाइण्मय में बैदाग मीं आते हैं । इनमें शिवाय दब कल्प, व्यूकरण , ज्योतिष ,झन्द तथा निरुक्त हैं । कल्प शास्त्र के अस्तर्गत शीत सुन्न, गृहयसुभ्र शुल्व युत्र हैं तथा धर्मसुत्र मी जा जाते है । शिपाप मैं प्रातिशास्थ,बकुकुमण जादि की गणना की जाती हैं । स्व अन्य फ़ापर से श्नवा वर्गीकरण सहिताओं के आधार पर भी किया जाता है । प्रत्येक संछिता वें के अनेक ब्रापण,आरण्यक,उपनिषा दे श्रोतपुत्र,यूकयसुन्न , प्रालिशास्थ,जकुमणी आदि आदि भी छोते थे । ऐसा प्रतीत हौता हैं कि प्रत्येक संछिता की अपनी-अपनी शालाओों के जलुसार (अथवा कहीं उमेक शाखाओं के सम्मिछित “्प से) वेधिक वाइण्मय के अपने-अपने उपयुंबत तर गम्थ थे । आज हम सभी परण्पराो की सभी रचमारं अब उपछव्व महीं हैं । पर्यक्त बेधिक वाइण्मय मैं संछिता और ब्राप्ण सांग कर्मेकण्ड पुर्वीमांसा मी कह देते दैं,क्याँ कि या में मस्त्रीं कप फ्रयीग बतलाते थे | इसके ' विपरीत आरण्यकक ओर उपनिणद् शानप्रधानम छोने से नाते हैं, और हमने 'उचर मीमसॉसिग सी कह 'दिया जासा हे । बहन के मुर्वमीससिग और 'उचर सीमासा ये थी रुप कर्क ण्ठ बोर के स्प मैं आगे चर उपलब्थ छौते हें । ये दोनों रूप कर्मप्रथ आर शान प्रधानता के आधार पर ही किए गर हैं | वादिक बाइण्सय मैं वैद के अन्तर्गत माने जाने वाएँ संछितामाग के मन्त्र के अतिरिक्त ड्ादाण गम्थ का अध्ययन ही यहा ब्वैचित है ।




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