महाभारत | Mahabharat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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७ द्रोणप | को ऊ5952928299घे:सि29359क928292क22:2उ3घ98फि90829288523%952:225 82'सकफफकस95832औच उस ऊघ87 ऋरे93 झछि' 82737 99क,औ28 छेकियातिसिकारिर8 धिरियर9िरर9/2 प् पे पे ग्फे दे 3553328555353559933 €&5556655€55६७७८८७७६४७७६७०७८८७ €छछ६' आनीय भालामदवध्य चाड़े प्रवादयन्त्वाशु जयाय भेरी। ॥ २९ ॥ प्रयाहि सूलाध्धट्यु यत। किरीटी घ्रकोदरों धर्मखुत्तो यमौ च | तान्वा हनिष्यामि समेत्य संख्ये भीष्माय गच्छामि हतो द्विषद्धि'॥३०॥ यसिन्‍्राजा सत्यघुतियुधिद्टिर! समास्थितों भीमसेनाजुनी च । बासुदेव। सा्यकि! सज्ञयाश्च मन्ये बल तदजय्य महीपै। ॥ ३१ ॥ जज के त॑ चन्सत्युः सर्वहरो5भिरक्षेत्सदाध्प्रमत्त। समरे किरीदिनम्‌ | तथापि हन्तास्पि समेत्य संख्ये यास्यामि वा 'मीष्सपथा यमाय ॥३९॥ न त्वेचाइहं न गमिष्यामि तेषां मध्य झूराणां तत्र चा5ह घ्रवीसि! मित्रटूहो दुवेलभक्तयों ये पापात्मानों न मसैते सहाया। ॥ ३३ ॥ सज्ञय उवाच-' समद्धिमन्तं रथसुत्तमं हद सकवरं हेमपरिष्कृत झुभमु। पताकिनं वातजवैदयात्तमैयुक्तं समास्थाय ययो जयाय ॥ ऐे४ ॥ सम्पूज्यमान! कुर्रभिमहात्मा रथर्ष भो देवगरौ ये धेन्द्र! । ययी तदायों घनमुग्रधघन्वा यत्राज्वसानं भरतघे भस्प ॥ रे ॥ चरूधिना महता स ध्वजेन सुवर्णशुक्तामणिरत्नमालिना | पहिन कर जय छूचक मेरी और नगाडे आदि बाजोंकों बजावों ॥ हे छत ! जिस स्थान पर अजुन, भीम, धर्म पुत्र युधि- थ्विर और नकु, सददेव हैं, वहां ही मेरे रथकों क्षीघ्र ले चलो । मैं उन लो- गोंको मारूंगा अथवा उन्होंकें अल्लोंसे मरकर भीष्मकी गतिको पाऊंगा ॥ जहां पर सत्यवादी राजा युधिष्ठिर, मीमसेन, अजुन, श्रीकृष्ण, सात्यक्ति और सूज्ञय- गण हैं, में जानता हूँ, कि वहां की सेना राजाओंसे अजेय (न जीतने योग्य) है। (९-३१) यदि सबका नाश करनेवाठा साक्षात सृत्यु भी अजुनकी रक्षा करेंगा, तो भी मैं युद्धमें अवश्य उसको मारूंगा,अथचा रूटटूह८६८९६८६६६८८६७७६९६६६६८६८८८८८९९८८९७७७३७७७७३७७७७७७३०७०३००७9889883593 भीष्मके मार्गसे में भी यमकोकमें गमन करूंगा, उनवीरोंके बीचमें में अवद्य ही जाऊंगा, परन्तु उसके निमित्त मैं यही वचन कहता हूं, कि जो मित्रद्वोही, पापी और अल्प भक्तिवादे पुरुष हैं, मैं उनकी सहायता नहीं चाहता ॥( ३९-३३ ) सझय बोठे, अनस्तर कर्ण समृद्धि युक्त, अखशस्रोंसे पूरित, सोनेकी खच्छ पताकासे शोमितत, बायुके समान शीघ्र चलनेवाले धोडोंसे युक्त रथपर चढ़के जय करनेके निमित्त चढ़े ॥ बह उग्र धनुद्धारी कण कौरवोंसि ऐसे पूलित हुए, जैसे देवताओंसे इन्द्र पूजित होते हैं । जिस स्थानपर भरतश्रेष्ठ मीष्मका अब- सान हुआ था,कर्ण उसी स्थानपर पहुंचे। रण जल्ठह्ये ऊकेकेकेसेसिफेसिसिसिसिये घिसिकिकिकिनिसिशनि हैि9िक9988829999ि99केक्रि9ि9छ988फ89909099909092098ऊ029982-3088335928क9888888998ि00290:8शत37 57




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