स्त्री कवि कौमुदी | Stree-kavi-komudi

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Stree-kavi-komudi by ज्योतिप्रसाद मिश्र - Jyotiprasad Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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खी-कवि-फौमुदी बर्यों ज्यों लै सलिल चर “सेख' घोषे बार बार, त्या त्यों बल 'ुदन के यार मुक्ति जात हैं । केयर के भाले केपी नाइर नदनवाले, लोहू के पियाले कहूँ पानी ते 'अपात हैं ॥| श्‌ चीस विधि 'आाडं दिन बारीये न पाएँ: और, थादी काज वादी घर वॉसनि की थारी द्दै। झेकु फिरि ऐैं कैद दै री दे जसोदा मार्दि मा वै ृठि मार बसी 'और पहुँ दारी दे ॥ प्लेप' कह तुम सिसवों न कछु राम यादि) भारी गरिदाइनु की सीये लेतु गारी है 1 सग लाइ मैया नेकु न्यारो न क दैया की नै, बलन बलैयां तैके मैया बलिदारी दै ॥ दे कीनी 'चादी 'बाहिली नदो दा एके चार छुम, एक बार जाय तिदि छछ दर दीजिये पे कही थावन सुद्देली सेज 'बावै लाल, सीसन सिसैमी मेरी सीख सुनि लीजिये ॥ -झावन को नाम सुनि सावन किये दे नैत, ब्यावन कई सुकैसे 'आाइ जाइ छीजिये। ड्०




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