अध्यात्म - कमल - मार्तण्ड | Adhyatm - Kamal - Martand

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Adhyatm - Kamal - Martand  by दरबारीलाल कोठिया - Darbarilal Kothiya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रस्तावना हर हुआ है श्रीर कब बना है। परन्तु विद्वान्‌ू लोग १८-१६ बष तक भी इस विपयका कोई ठीक निणुय नहीं कर सके श्रौर इसलिए जनता बराबर बंघेरेमं ही चलती रही । प्रन्थकी प्रोट़ता, युक्तिवादिता श्रौर विषय- प्रतिपादन-कुशलताको देखते हुए कुछ विद्वानोंका इस विषयमें तब ऐसा खयाल होगया था कि यह ग्रन्थ शायद पुरुपाथसिंद्धथ पाय श्रादि प्रंधोंके तथा समयसारादिकी टीकाश्ोंकें कर्ता श्रीद्रमृतचन्द्राचायका बनाया हुश्रा हो । पं० मक्वनलालजी शास्त्रीने तो इसपर अपना पूरा विश्वास ही प्रकट कर दिया था श्रोर पंचाध्यायी-माषाटोकाकी अपनी भूमिका में लिख दिया था कि “पंचाध्यायीके कर्ता अनेकान्त-प्रधानी आआचायवय त्रमृतचन्द्रसूरि ही हैं ।” परन्तु इसके समर्थनमें मात्र श्रनेकान्तशेंलीकी प्रधानता श्रोर कुछ विषय तथा शब्दोकी समानताकी जो बात कही गई उससे कुछ भी सन्ताप नहीं होता था; क्योंकि मूलग्रन्थमें कुछ बात ऐसी पाई जाती हैं जो इस प्रकारकी कल्पनाके विरुद्ध पड़ती हैं । दूसरे, उत्तरवर्ती ग्रन्थकारांकी कृतियांमें उस प्रकारकी साधारण समानताश्रोंका होना कोई अस्वाभाविक भी नहीं है। कवि राजमल्जने तो अपने अध्यात्मकमलमातणुड ( पद्य नं ० १० ) में श्रमृतचन्दसूरिके तत्वकथनका श्रमिनन्दन किया है आर उनका अनुसरण करते हुए कितने ही पद्य उनके समयसार-कलशोंके अ्रनुरूप तक रक्‍खे हैं । अस्तु । पं० मक्खनलालजीकी ठीकाके प्रकट होनेसे कोई ६ वर्ष बाद श्रथांत्‌ श्राजसे कोई २० व पहले सन्‌ १६२४ में मुके दिल्‍ली पंचायती मन्दिरके शाख्र-भणडारसे, बा० पन्नालालजी श्रग्रवालकी कृपा-द्वारा, 'लाटीसंहिता” नामक एक अश्नतपूव पग्रन्थरत्नकी प्राप्ति हुई, जो १६०० के करीब श्लोकसंख्याको लिये हुए श्रावकाचार-विपय पर कवि राजमल्लजीकी खास कृति है श्रौर जिसका पंचाध्यायीके साथ तुलनात्मक श्रष्ययन करने पर मुते यद बिलकुल स्पष्ट होगया कि पब्चाध्यायी भी कवि राजमल्लजीकी ही कृति है। इस खोजको करके मुके उस समय बड़ी प्रसन्नता हुई--




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