संस्कृत व्याकरण | Sanskrit Vyakaran

Sanskrit Vyakaran   by डॉ. मुनीश्वर झा - Dr. Munishwar Jha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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7 सदन लि सं को हनन मम. न * अप लाए नर व अजय थे नकद कद जाग. लिए हर पक जज इन व्याख्याताओं के हाथ उनके संशोधन और पूर्णीकरण थोड़ी सात्रा में हुए; किन्तु वे कभी पराजित अथवा नहीं हुए हैं। उनकी रचना की मुख्य और सर्वाधिक प्रामाणिक टीका सहाभाष्य, बड़ी व्याख्या, के नाम से अभिह्ित है जो पतंजलिकृत हैं । भाषा, चाहें वह जनभाषा क्यों न हो, जो लिखने और बोलने में व्यापक और निरन्तर प्रयोग लेकर आती है, मुख्यतया सीधी परम्परा, गुरु से दिष्य के प्रति संगमन और प्राप्त ग्रन्थों के अध्ययन तथा अनुकरण के चलते ही, न कि व्याकरणिक नियमों के अनुगमन से, जीवन्त रहती है; तथापि व्याकरण का नियामक के रूप में अस्तित्व, और विशेषत: एकमात्र का, जो अकाट्य और निर्देदापरक मूल्य वाला समझा जाता है, सबक नियामक प्रभाव को. उत्पन्त किये बिना नहीं रह सकता । इससे जो कुछ उसके निर्देशों के प्रतिकूल होता है, चाहें शिथिल' प्रयोगवाला ही क्यों न हो, उसका परिहार क्रमिक वृद्धि से हो जाता है; भर साथ ही, ग्रन्थों के निरन्तर उत्पादन में जो कुछ उनमें उससे अविहित था, उसका क्रमिक लोप हो जाता है । इस प्रकार भारत का सम्पूर्ण आधुनिक साहित्य पाणिनि-प्रभावित है, कहना चाहिए कि उनके और उनके सम्प्रदाय द्वारा बनाये गयें ढाँचे में आविष्ट है । इस प्रक्रिया की कृत्रिमता की सीमाएँ क्या हैं, यह अभी तक ज्ञात नहीं है । भारतीय व्याकरण के विशिष्ट शिक्षाथियों का ध्यान ( और विंघय इतना दुर्बोध और कठिन है कि इसके ऐसे विंदिप्ट अधिकारियों की, जो इस प्रकार के सामान्य तथ्यों पर प्रामाणिक विधार दे सकें, संख्या अत्यधिक न्यून है ) पार्णिनि के अतुरूप संस्कृत के निर्धारण की ओर या व्पार्करण से भाषा की व्याख्या करने की ओर ही अभी तर्के सबसे मुंश्ये रही हैं । तथा, स्वतः यधेष्ट रूप से, भारत में अथवा अँन्पत्र॑ जहाँ कहीं प्रमुख प्रयोजन भाषा की शुद्ध॑म्शंद्ध बॉलनें और लिंखन की है, अंधर्तिं यथा वथाकरेगों ने भार्थती दी हैं, यही प्रवू्ति की उचित पंथ है । किन्नुं यहं भीधा की जनिने की ठीक-रदीक तरीकों नहीं हैं। एसी समंथ अंविलैम्ब आना चहिंएं अंथंवा ऐसा संमयं आं भी चुका हैं, जंबे प्रयास इसके विपरीत भाषा हीरा व्याकरण की व्योख्यां करेगी होंगा--पाणिंनिं के नियंभीं की ( जिनेंमें ऐसें कैंम नहीं हैं जो संदिंग्व थीं कंभी-कैमी विसैंगंत भी प्रतीत होते हैं ) यंर्थिता की परीक्षण यंथासंभर्वे विस्तौर के साथ करना, यहूं निर्धारण करनी किं उनके छिए कौन और कितनी प्रयोगसरणि सर्वे आधार भूत है, और में कौने अवंदोध, जी स्वभीवर्त: प्रॉमीिति स्वरूप वलि हैं, य्थपि उंनकें हीरो अंप्रॉमाणित हैं, बंचाये जा सकते हैं ।




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