कलम कुल्हाड़ा | Kalam Kulhada

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Book Image : कलम कुल्हाड़ा  - Kalam Kulhada

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्र कलम-कुल्हाडा लगानेका निश्चय करते हुए कहा कि हे परमात्मा, श्रपने दरबार में तू 'झब दमके भी बोला ले | नगरपालिका के कमेंचारी छोर सुप्रसिद्ध सामाजिक कार्यकत्तों जुद् भाढ लगानेवाले ने कहा--गाधीजी हरिजनों में सबसे बड़े थे । वे हस लोगों के सबसे बड़े चौधरी थे । उनके न रहने के वाद अब दस लोगोंकी रक्षा करनेवाला कोई न रद्दा ! पण्डित लछ्िमन पण्डा ने कहा कि गावीजी सच्चे गुरु थे । घिना उनकी एक सलाह के गउरमेण्ट ससुरी ठप रहती थी । उन्हींका इई सब परताप है कि शव मन्दिरो में सब कोई छोट वड घुस पावत हैं । जेदका चजददसे चार पैसा दमनीं क झामदनी बढ़ गयी । गाधघीजी सब लोगों के लिए कुछ न कुछ कड़लन ! सिद्धी मलाइ ने कद्दा--गान्द्दीजी बहुत भारी मलाह थे । श्ाज वरसों से वे मुलुककी नौका खे रहे थे। उनपर हम सब लोगों को घमण्ड है । श्गर उनके हाथ में देश की पतबार न रही दोती तो 'झवतक सुलुक की नौका भेंमकधार मे दूवती होती । चिकित्सक शशि रोखर ने कददा दे-- गांधीजी न तो नेता थे, न मसीहा थे, न साधु थे, न मद्दात्मा थे। नवे काप्रेसी थे शोर न उपदेशक थे । वे दुनिया के सबसे बढ़े चिकित्सक थे । उनकी चिकित्सा के कुछ अनुभवों से मैं कुछ व्याश्चये चकित हूँ । मिट्रीकी चिकित्सा के सम्बन्धमे खुद मेने उनसे राय पृछी थी । मेंने उनसे जो जानकारी 'ओर चिकित्सा-प्रणाली हासिल की, दुनिया के 'झन्य किसी चिकित्सक ने मुभकसे ऐसी ध्यदूभुत चिकित्सा की कोई वात नहीं बतलायी । किसी को कुछ माठछुम दही नहीं था । भोजन के सम्बन्ध में उनके सुमकाॉपर अमल करने से खुद मेरा पीला शरीर लाल हो गया । संसार के सबसे वडे चिकित्सक के स्वरगवास से दुनिया बहुत दरिद्र हो गयी |




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