नियमसार | Niyamsaar

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Niyamsaar by श्री कुन्दकुन्दाचार्य - Shri Kundakundachary

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about श्री कुन्दकुन्दाचार्य - Shri Kundakundachary

Add Infomation AboutShri Kundakundachary

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
दोसहस्राब्दो पूर्वे में उत्तर और दक्षिण की भाषात्मक एवं मावनात्मक एकता का अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया । नियमसार का परिचय नियमसार आचायें कन्दकन्द की महत्त्वपूर्ण कृति है । उनके तीन ग्रन्थ --समयसार, प्रवचनसार और पचास्तिकाय--प्राभृतत्रयी कहलाते है । यद्यपि जैन समाज में इनका जो विक्षेष महत्त्व और आदर है, वह महत्त्व और आदर नियमसार को प्राप्त नहीं है, किन्तु नियमसार के वण्ये विषय और उसकी प्रौढता को देखकर यह कहा जा सकता है कि नियमसार भी एक परमागम है और उसकी महत्ता किसी भी रूप मे कम नही है । किन्ही कारणों से इसका प्रचार इसकी महत्ता के अनुरूप नही हो पाया । आचाये ने 'नियमसार' इस नाम की सार्थकता को बताते हुए कहा है--जो नियम से करने योग्य अर्थात्‌ दर्शन, ज्ञान, चारित्र हैं, वह नियम है और विपरीत के परिहार के लिए सार शब्द दिया गया है । अपने वण्ये विषय की उत्थानिका में आचाये ने अपनी रचना का सम्पूर्ण सार इस प्रकार गुम्फित किया है--जेन शासन मे माग॑ और मागें का फल ऐसे दो भेद किये है । मोक्ष-प्राप्ति का उपाय तो मां है और उस उपाय के सेवन का फल मोक्ष है। नियम अर्थात्‌ सम्यग्दर्शन, सम्यक्‌ ज्ञान और सम्यक्‌ चारित्र मोक्ष का उपाय या मागें है और इनका फल निर्वाण (मोक्ष ) है । प्रारम्भ के चार अधिकारो--जीवाधिकार, अजीवाधिकार, शुद्ध- भावाधिकार और व्यवहार चारित्राधिकार---में व्यवहार नय की मुख्यता से सम्यग्दर्शन, सम्यक्‌ ज्ञान और सम्यक्‌ चारित्र का कथन किया गया है । इसमे आप्त, आगम और तत्वों के श्रद्धान को सम्यग्दश॑न कहा है । तत्पदचात्‌ आप्त, आगम और छह तत्त्वाथों और व्यवहार चारितश्र का वर्णन किया है । व्यवहार-चारित्र में पाँच ब्रत, पाँच समिति और तीन गुप्तियों का कथन है । ( जाप




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now