भारत में बंधुआ मजदूर | Bharat Men Bandhua Majadur
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
161
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मारते मे बघुआ मजदूर 17
बेवकूफ नहीं वनाया जा सका । उह नपनी उस सीमित भूमिका का एहसास हो
गया जार फसल कटने के साथ ही समाप्त हो जाती थी । खेती से हुई फसल पर
जिसे व कम रतोड सहमत के बाद बैदा करते थे, अब उनका किसी तरह का दावा
नही था।
वे खेती के प्रति उदासीन हो गय। इससे खाद्य स्थिति और भी खराब हो
गयी । जनाज की जखीरवाजी वरके और कीमता मे वेतहाणा वृद्धि करके ब्रिदिश
सौदागरा न वेशुमार मुनाफा कमाया, लविन इसका जा अवश्यभावी नतीजा था
वह भी सामने आ गधा ।
बंगाली कैलेंडर के अनुसार 1176 का वप बहुत अशुभ सावित हुना।
लेक्नि अप्रेजी कलेडर का बय 1770 जो बंगाली कॉलेंडर के उस बप से मेल
खाता था, देश में घुस आये इन नये जुदेरा के निए भरदुर समद्धि का वप था ।
1176 का यह साल औरा का तथा इतिहास को बखवी याद है। यह
जवरदस्त अकाल का बम था--ऐसा नकाल जिसे मनुष्य मे तैयार किया था।
बगालि, विहार और उडीसा को मिला कर बनाये गये सुबे की एव तिहाई
आवादी के मुहू से खान के लिए जा चीख निकली बहू रमश धीमी होती हुई सदा-
सदा के लिए खामोश हो गयी !
सेतीबाडी का काम ठय पडा था, पर अग्रेज सौदागर शासक अभी भी कर
वसुलने निकलते थे। जत्याचार, यत्रणा, बलात्सार और लूटयाट ही इनके
हथियार थे । इसमे उ हे सफलता मिली । 1768 ई० में, अकाल से दो बप पुव
बंगाल मे कुल 1,52,40,856 रुपए कर के रुप मे चसुले गय। 1771 ई० न,
अकाल के एक बप वाद यह राशि 1,57,26,576 रुपए हो गयी 1
साल दर-सात कम्पनी के यज्ञान में ज्यादा से ज्यादा कर जमा हॉन लगा ।
जछ अधिकारिया द्वारा व्यक्तिगत तौर पर अपनी जंयें भरन कं लिए गर
कानूनी ढंग से करा की वसूली की गयी जौर व्स पन्रिया मे तरह-तरह के जत्या
चार भी किय गये जिसके फ्लस्वर्प एक जसगठन की स्थिति पैदा हो गयी।
नतीजा यह हुना कि कम्पनी अपनी करारोपण प्रणाली को सुचार रूप सेन
चला सबी ।
1772 इ० मे इसने 'पंचसाला वदायस्त' नामक प्रणाली शुरू की ! नकाल
के प्रभावा ने इस प्रयास का विफल कर दिया । इससे पूव एक्साला वदायस्त को
पहले ही तफ्नाया जा चुका था ! वाद से, 'दससाला वदोवस्त' भी करारापण की
नियमित प्रणाली को समथन नही दे सका ।
पक्दम हताश होकर लाड कानवालिस न अन्तिम समाधान का सहारा
लिया
और यह था स्थायी उदोयस्त !
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