श्री बाबू देवकुमार - स्मृति अंक जैन सिद्धान्त भास्कर भाग - 18 | Shri Babu Dev Kumar Smriti Ank Jain Siddhant Bhaskar Bhag - 18

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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किरण ? 3 बायू देवकुमार जी की जीवनी 'चहुंदिक हाह्दाकार हे, शोक महां संताप | बालवूद्ध बनिता बधू , सबहीं करत प्रलाप |! न्श् । ये घयं ९ ! ये भ्रात गण, यहीं जरात की रोत । काल बलीके सामने, कछुनहिं नीत श्नीत ॥। माया जगकी अमित है, यह संसार असार। एक दिना सब जायेंगे, यहीं जगत व्यवहार ॥। विभव सदा नहि रहि सके, तथा शरोर अनित्त । काल सदा सिर पर खड़ी, धर्महि दीज चित्त ॥) मृत्यु जबलों दूर है, जब लों देह निरोग | घमंपन्थ साधन करो, वृथा जगतको भोग ॥।




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