जय महावीर महाकाव्य | Jay Mahavir Mahakavya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
143
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)संयम की तो बात न पूछो-
कैसी थी वह रात न पूछो ।
ज्ञान तपस्या सब दूभर थे-
तिमिराच्छन्त-सघन घर-घर थे।
लोभ ग्रसित धरती रोती थी-
पुरी साध नहीं होती थी |
दीन-हीन सब नारी-नर थे-
दुख से पीड़ित अन्तरतर थे।
तभी किरण-सा कोई आया-
भव को निमंल दुश्न बनाया ।
सब्र कहते वे तीर्थकर थे-
ज्ञान-किरण नव ज्योति प्रखर थे ।
18 / जय महावोर
नयी साधना जग में जागी-
दुःख की रजनी तत्क्षण भागी ।
यहीं साधना उज्ज्वल होकर-
भव को ही कल्मष से धोकर ।
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