जय महावीर महाकाव्य | Jay Mahavir Mahakavya

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Jay Mahavir Mahakavya  by माणकचंद रामपुरिया - Manakchand Ramapuriya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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संयम की तो बात न पूछो- कैसी थी वह रात न पूछो । ज्ञान तपस्या सब दूभर थे- तिमिराच्छन्त-सघन घर-घर थे। लोभ ग्रसित धरती रोती थी- पुरी साध नहीं होती थी | दीन-हीन सब नारी-नर थे- दुख से पीड़ित अन्तरतर थे। तभी किरण-सा कोई आया- भव को निमंल दुश्न बनाया । सब्र कहते वे तीर्थकर थे- ज्ञान-किरण नव ज्योति प्रखर थे । 18 / जय महावोर नयी साधना जग में जागी- दुःख की रजनी तत्क्षण भागी । यहीं साधना उज्ज्वल होकर- भव को ही कल्मष से धोकर ।




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