कुछ देखा कुछ सुना कुछ समझा | Kuch Dekha Kuch Suna Kuch Samjha

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Book Image : कुछ देखा कुछ सुना कुछ समझा - Kuch Dekha Kuch Suna Kuch Samjha

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about सिद्धनाथ मिश्र - Siddhnath Mishra

Add Infomation AboutSiddhnath Mishra

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
[ ७] था । शेप दोनों का आकर्षण अस्पप्ट था । पहछा बिहार नेहरू घाग का हुआ । जन-संकुछ नगरों ओर एकान्त के वास सें कितना अन्तर है, बह स्पष्ट थनुभूत हुआ । यहाँ से उन्नाव पहुँचे, जहाँ अछीगढ़ की जाति मच्छरोंकी अधिकता है। रात को एक बंकीछ के मकान में ठहर । उनके घर में ही छोटा-सा मन्दिर हैं। उनकी उपासना विधि को देखकर ठया तकं-भक्ति को कचोटता है! पर कहीं-कहीं भक्ति तक की अन्त्येप्टि ही कर डाठती है |. अणु्रतों की पर्चा अच्छी रददी । बहाँ से 'वरमआा' आदि गाँवों को पार करते हुए लखसकऊ पहुँचे । यातायात के साधनों ते गाँवों ओर लगरों की सीमाएं 'तोड़ दी हैं; फिर भी नगरों की दुनिया गाँधों की दुनिया से सिन्‍त है। गंगाप्रसाद मेमोरियल हॉल में पहला प्रयचस था । उत्तरप्रदेश के मुख्य मंत्री डा० सम्पूर्णनल्दजी ने स्त्रागत भाएण किया | उसकी साया में भावना और युक्ति दौनों का सामझस्य था। स्थान-स्थान पर भारतीय आरथा मी अभिव्यक्त हो रही थी। “्शीघगामी वाहनों की दुनिया में भन्थर गति से चलनेवाे चाल, समृद्धि के वातावरण में अकिय्नन भिटुक का स्वागत होता है, इससे ठगता हदेकि शीघ्रगामिता और समृद्धि अपने-आपमें सर्यादित नहीं हैं। उन्हें दसरे पक्ष की भी अपेक्षा है” आार्यश्री ने इन शब्दों में अपना भाव ग्रस्तुत्त किया और बीच में कुद् महत्वपूर्ण पशन भी उपस्थित किए । वे प्रश्न सुकरात की प्रश्न-शेी की याद दिछा रहे थे। आचार्य श्री ने जनता से पूछा--? यदि हैं तो क्या आप इन्हें हैं तो क्या आप इन्हें क्या आप अणुन्रतों से सहमत हैं ? अपने छिए उपयोगी मानते हैं ? यदि मानते स्वीकार करने की स्थिति सें हैं। यदि हैं तो क्या आप झणुन्रती बनना चाहते हैं?” क्षण-भर के छिए छोगों की भावनाएं आत्म-निरीक्षण में डुवकियाँ ढेने ठगी और सम्भव दे कि सभी ने अपनी- अपनी शक्ति को तौछने का प्रयत्न किया थर, श इन प्रश्नों का अपने-शापमें उत्तर दूढ़ा । भीतिकता का आवश्ण घहुत गद्दरा है । भाध्यात्मिकता की चोक से बह एक घार भी सिंछ जाए, यह सरठ नहीं । पर सतत्‌ प्रयत्न रहे, वो वद्द अवश्य ही क्षीण बनता है। कमी दै परयत्र करनेवाछों की ! छोग




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now